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१८४] भारतीय विद्या
[वर्ष ३ भागमा लिच्छविओ-एक जब्बर उच्च जातीवाळा लोको रहेता हता, जेमने बौद्धआगममां बहुज वखाण्या छे अने लगभग प्रायस्त्रिंशत् देवताओनी समान श्रेणिए मूक्या छे (२,१७). दीघनिकायना पाटिक सुत्तन्तमाथी हुँ आपणी शोधने उपयोगी एवां नीचेनां कथनो उतारूं छु. अहिं वारंवार वजिगामे एवो शब्द वापरवामां आव्यो छे. पण तेनो अर्थ "वृजिओना एक गाममा" एवो नहि, पण "वृजिओना समूहमां" अथवा "वृजिओनी सामान्य समिति प्रमाणे" एवो करवानो छे. कंदरमुख (११) पाटिकपुत्त (१५) विषे आयु कहेवामां आव्युं छे : "वृजिओनी सामान्य समिति प्रमाणे एणे लाभार अने यशाग्र प्राप्त की हता" (लाभग्गप्पत्तो चेव यसम्गप्पत्तो च वजिगामे ) बुद्ध लिच्छविपुत्त सुनक्खत्तने उद्देशीने कहे छ के-बुद्ध, धर्म अने संघनो यश (वण्णो) वजिगाममां अनेक रीते गावामां आवे छे.१ त्यां पाळवामां आवतां विधिनियमो एटलां चोक्कस होय छे के तेने आदर्शरूप गणी शकाय. आ उपरथी एकरीते एम मालुम पडे छे के वृजिओना बुद्ध, धर्म अने संघ विषेना विचारो चोकस हता अने ते विषे सौ एकमत हता; अने बीजी रीते एम पण मालुम पडे छे के बुद्ध वृजिओना आ ऐक्यमतनो पोताना धर्मना लाभमा दाखलो आपता. बुद्ध अने वृजिओ वञ्चे गाढ, दृढ मैत्री संबंध हतो ए आ परिस्थिति स्पष्ट करे छे.२ ११. बुद्ध साथे अजातशत्रुनो विचार विनिमय
बुद्ध ज्यारे हजी राजगृहमा विहरता हता त्यारे अजातशत्रुए वृजिओ सामेनी दुश्मनावटना पोताना निर्णयो (जुओ६८) पीताना अमात्य वस्सकार ब्राह्मण द्वारा तेमना अभिप्राय माटे जणाव्या (म०प० सु० १.२, वगेरे). एने पोते सीधो जवाब आपवाने बदले बुद्ध आनंदने उद्देशीने सूचवे छे के वृजिओए सात सारा गुणो केळच्या छे, जेने लईने तेओ बळवान अने अजेय थया छे. वस्सकार ते उपरथी अनुमान बांधे छे के वृजिओ जीताय एम नथी. अर्थात् "छेतरपिंडी सिवाय अने एकताना भंग सिवाय युद्धमा जीताय एम नथी.” (१.५.)
राजगृहथी बुद्ध, अटकता अटकता, पाटलिग्राम तरफ जाय छे (जुओ९८). त्यां बन्ने अमात्यो सुनीध अने वस्सकार एमनी आगता स्वागता करे छे अने एमने भोजन लेवा निमंत्रे छे. महेमानगिरी विशेर्नु वर्णन रूढ थयेली विगतो प्रमाणे ज करवामां आव्यु छे (१, २९ वगेरे). अलबत्त अमात्यो बुद्धना आशीर्वादनी खातर ज आ तकलीफ नहोता उठावता; एमने तो एमना राज्याधिकारनी रूये आ करवु पड्यु हतुं. एमनो उद्देश कई सूचवायो नथी; पण ते ए होवो जोईए के पोताना प्रीतिपात्र वृजिओ
१. इति खो ते सुनक्खत्त अनेकपरियायेन मम (संबंधतः-धम्मस्स, संघस्स) वण्णो भासितो वजिगामे।
२. एम छतां निर्वाण पछी सो वर्षे बजिपुत्तकोए बौद्ध धर्ममां भेद पाडवाने कारण आप्यु.
३. अहीं संग्राहक ३५ गुणो विणे अने ६ गुणो विषे एक लांबी चर्चा उमेरे छे; जे द्वारा भिक्षुओने “कल्याण मेळववानुं छे; अकल्याण नहि." आ ग्रंथना वस्तु विषेना संग्राहकना मनस्वीपणानो दाखलो पूरो पाडे छे.
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