________________
१९४] भारतीय विद्या
[वर्ष ३ आ बे गाथाओनो अर्थ ए छे, के शकनृप-कालना वर्तमान वत्सर ५३१ ना चैत्रशुक्ल पूर्णिमा बुधबार अने खातिनक्षत्रना दिवसे* वलभी नगरीमा, शीलादित्य राजाना राज्यसमये, [अमुक नामांकित] जिनभवनमां, आ ग्रंथनी रचना करवामां आवी छे. जिनभवन- नाम सूचवनार शब्द, पानानो ए भाग जराक खरी गएलो होवाथी, जतो रह्यो छे. पांच के छ अक्षरनो ए शब्द लागे छे, तेमांथी प्रथमना त्रण अक्षरो 'महवि' उपलब्ध छे. आमां जणावेलो शकनृप-काल ते प्रसिद्ध शक संवत् छे जेनो प्रारंभ वि० सं० १३५ मां, अने इ०स०७८-७९ मां थाय छे । आ हिसाबे शक संवत् ५३१ ते वि०सं० ६६६ अने इ०स०६०९-१० बराबर थाय छ। आमा उल्लेखेलो राजा शीलादित्य ते क्लभीना मैत्रकवंशनो सुप्रसिद्ध राजा प्रथम शीलादित्य अपर नाम धर्मादित्य छे, जेनो राज्यकाल इ०स० ५९९ थी ६१४ सुधीनो सप्रमाण निर्धारवामां आव्यो छे । ए राजानां अनेक ताम्रपत्रो मळ्यां छे जेमां गुप्त-वलभी संवत् २८५ थी ते २९० सुधीना संवत्सरोनो उल्लेख थएलो छ । ए गुप्त-वलभी संवत्नो प्रारंभ विक्रम सं० ३७६ अने शक सं० २४१ मां थाय छ । आ गणनाए २८५ गुप्त-वल्लभी संवत्सर ते शक संवत् ५२६ बराबर थाय छ । एटले के शिलादित्यना मळेला ताम्रपत्रोना आधारे ज शक सं०५२६ थी ते ५३१ सुधीमां तो ए राजानी विद्यमानता सुनिश्चितरूपे सिद्ध थई जाय छे अने तेथी प्रस्तुत माथागत शक सं० ५३१ ना उल्लेखने संपूर्ण पुष्टि मळी रहे छे । वळी आ उल्लेखथी शीलादित्य प्रथमना समय माटे पण एक वधु सुनिश्चित आधार मळी आवे छे। कारण के ए राजानो सत्तासमय सूचवनार, एना ताम्रपत्रो सिवाय, बीजो कोई खतंत्र साहित्यगत उल्लेख अत्यार सुधीमां प्रकाशमां आव्यो नथी। आथी आडकरी रीते गुप्त-वलभी संवत्नी गणना माटे पण एक नवीन प्रमाणनी आपणने उपलब्धि थाय छे, के जे गणना माटे, परस्पर केटलाक विसंवादी प्रमाणोने लीचे, हजी सुधी सुनिश्चितता सिद्ध थई शकी नथी।
आ गाथाओनी उपलब्धिथी आपणने जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणना समय अने स्थान बन्ने विषेनी चोक्कस माहीती मळी आवी छे जे जैन साहित्यना इतिहासमाटे एक सीमास्तंभ सूचक वस्तु छे । ए उपरथी जणाय छे के वलभी ए जैन ___ * योगायोगथी आजे ज्यारे हुं आ लेख लखी रह्यो छु, त्यारे पण चैत्र पूर्णिमानो दिवस छे. अने जो के वार शुक्र छे, पण नक्षत्र स्वाति ज छ । वर्तमान शक संवत् १८६७ छे, ए गणतरीए आजथी बराबर, १३३५ वर्ष पहेलां, जिनभद्र गणिए विशेषावश्यक भाष्यनी महान् रचना पूर्ण करी हती।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org