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अंक १]
जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणनो समय [ १९५ साहित्य अने जैन संप्रदायर्नु घणा लांबा समय सुधी एक केन्द्रस्थान बनी रह्यं हतुं । देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणे वीरनिर्वाण सं. ९८० (- एटले के परंपरागत गणना प्रमाणे विक्रम सं०५१० अने डॉ० याकोबीनी गणनाप्रमाणे विक्रम सं०५७०)मां, बलभीमां विद्यमान जैन आगमोनी वाचनाने संकलित अने सुव्यवस्थित करी तेम ज तेने पुस्तकारुढ बनावी । जिनभद्र गणिना आ ग्रन्थनिर्माण समयथी पूर्वे लगभग एक सैकानी अन्दर ज जैन आगमोनुं आ महान् ऐतिहासिक संपादन कार्य पूर्ण थथु हतुं । आगमोनी वाचना सुनिश्चित थया पछी ते उपर विशेषरूपे भाष्यो के चूर्णियो आदि रचावानो प्रारंभ थयो हतो। एवा भाष्यकारोमा संघदास गणि अने जिनभद्र गणि मुख्य जणाय छे । संघदास गणिए बृहत्कल्पभाष्य, पंचकल्पभाष्य आदिनी रचना करी छे त्यारे जिनभद्र गणिए निशीथभाष्य, जीतकल्पभाष्य, आवश्यक-विशेषभाष्य आदि ग्रन्थोनी रचना करी छ । संघदास गणिना समय अने स्थान आदि विषे अद्यापि कोईए कशो विचार को होय तेम जणातुं नथी; तेम ज एमनी कृतियो विषे पण कोई प्रकारनो ऊहापोहात्मक प्रकाश पाडवामां आव्यो नथी । एमनी कृतियोगें जो अन्तरंग परीक्षण करवामां आवे तो तेमांथी केटलीक उपयोगी हकीकत जरूर मळी आवे तेम छे। बृहत्कल्पभाष्यना अमुक उल्लेखो उपरथी सूचित थाय छे के तेमनो समय प्रण लगभग जिनभद्र गणिना समयनी बहु ज नजीक होवो जोइए अने तेओ पण जिनभद्र गणिनी जेम केटलोक समय वलभीमा रहेला होय तो असंभवित नथी । ___ आ बन्ने महान् भाष्यकारो पछी, तरत ज सुप्रसिद्ध चूर्णिकार जिनदास गणि महत्तर थया जेमणे आवश्यकचूर्णि, निशीथचूर्णि, नन्दिचूर्णि, अनुयोगद्वारचूर्णि आदि अनेक चूर्णिग्रन्थोनी रचना करी। एमांथी नन्दिसूत्रनी चूर्णिना अन्ते, जिनभद्र गणिनी जेम, आपणा सद्भाग्ये, एमणे पण पोताना समयनो सूचक एक संक्षिप्त निर्देश करी दीघेलो छे जेना परथी आपणे एमना जीवन समयनी एक निश्चित साल मेळवी शकीए छीए। ए निर्देश आ प्रमाणे छे-"शकराज्ञः पञ्चसु वर्षशतेषु व्यतिक्रान्तेषु अष्टनवतिषु नन्द्यध्ययनचूर्णिः समाप्ता।" अर्थात्-'शकराजाना ५९८ वर्ष वीत्या त्यारे आ नन्दिसूत्रनी चूर्णिनी रचना समाप्त थई ।'
आ उल्लेख परथी आपणने स्पष्ट ज्ञात थाय छे के जिनभद्र गणिए पोताना विशेषावश्यक भाष्यनी रचना पूरी करी ते पछी बराबर ६७ वर्षे जिनदास गणिए पोतानी नन्दिचूर्णिनी रचना समाप्त करी हती । आ रीते जोतां जिनभद्र गणि अने
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