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१९६] भारतीय विद्या
[वर्ष ३ जिनदास गणि तद्दन समकालीन न होय तो पण एक बीजाना बहु ज निकटकालीन हता एमां शंका नथी । संभव तो एवो छे के जिनभद्र गणिनी उत्तरावस्था अने जिनदास गणिनी पूर्वावस्था लगभग एकसमयावच्छेदक हशे। जिनदास गणिनी कृतियोनुं निरीक्षण जो वधारे सूक्ष्मताथी करवामां आवे तो आपणने एवी अनेक बाबतो मळी आवे, जे परथी आपणे एमना स्थाननो पण केटलोक आभास मेळवी शकीए । एमना ग्रन्थोना उल्लेखो परथी जाणवाने कारण रहे छे के ए पण कदाचित् वलभीमा केटलोक समय वस्या होय । सौराष्ट्र अने आनर्तना प्रदेशनो एमने सारी पेठे परिचय हतो, तेवा तो घणा उल्लेखो एमनी कृतियोमां चोकसरूपे मळी आवे छे. एनो विचार अमे कोई बीजा प्रसंगे करवा धार्यो छे ।
जिनदास गणि महत्तरनी उत्तरावस्थानो समय ए ज महान् टीकाकार अने शास्त्रकार हरिभद्रसूरिनी पूर्वावस्थानो समय छे, ए आपणने कुवलयमालाना अन्तिम उल्लेखथी निश्चितरूपे ज्ञात थई गयुं छे। जिनदास गणिनी नन्दिचूर्णिनी रचना समाप्तिना संवत्सर पछी पूरा १०२ वर्षे उद्योतनसूरिए पोतानी महान् कृति कुवलयमाला कथानी रचना पूरी करी । उद्योतनसूरिए हरिभद्रसूरि पासे न्यायशास्त्रोनो अभ्यास कर्यो हतो, ए वस्तुनो एमणे बहु ज स्पष्ट शब्दोमां, सादर अने साभार उल्लेख कर्यो छे, तेथी हरिभद्रसूरि, उद्योतनसूरिनी युवावस्थासमये, वृद्धावस्था व्यतीत करता हता ए सुनिश्चित छ । एथी हरिभद्रसूरिए, जिनभद्र गणि तेम ज जिनदास गणिए बन्ने महान् आचार्योनी कृतियोने बराबर जोएली होवाथी तेमनो विशिष्ट उपयोग जे एमनी कृतियोमां थएलो आपणने देखाय छे ते सर्वथा संगत थई जाय छे। जो के सर्वथा निश्चित रूपे नहि, पण सामान्य रीते, ज्यां सुधी बीजी कोई विशेष वस्तुनी उपलब्धि नहि थाय त्यां सुधी, आ च्यारे महान् ग्रंथकारोनो आनुमानिक समय आ प्रमाणे मानी शकाय। .. शक संवत् ४००-४५० वचे देवर्द्धि गणि क्षमाक्षमण ...
, ५००-- ५५० , जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण ..., ५५०-६०० ,, जिनदास गणि महत्तर " ६०० - ६५० , हरिभद्रसूरि
६५०-७०० , उद्योतनसूरि 'जिनभद्र गणि क्षमाश्रमणनी मळी आवेली प्रस्तुत निश्चित मितिना आधारे, आ रीते जैन इतिहासनी अनेक अव्यवस्थित अने अनिश्चित समय गणनाओ उपर सारो प्रकाश पाडी शकाय तेम छे अने जैन साहित्यना क्रमविकासनी केटलीक विशिष्ट अने प्रमाणभूत परंपरा गोठवी शकाय तेम छ ।
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