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कवि आसिग कृत जीवदयारास
[प्रास्ताविक]
'भारतीय विद्या'ना बीजा भागना प्रथम अंकमां, अद्यावधि ज्ञात गुजराती भाषानी पद्यरचनामां, सौथी प्राचीनतमनुं जेने स्थान आपी शकाय तेयो संवत् १२४१ मां रचाएलो शालिभद्रसूरि कृत 'भरतेश्वर बाहुबलिरास' में प्रसिद्ध कर्यो हतो । तेनी प्रस्तावनामां जणाव्या प्रमाणे तेनी प्रसिद्धिनी पूर्वे, जेने सौथी प्राचीन कही शकाय तेवो एक 'जंबूस्वामिरास' प्रसिद्ध थयो हतो जेनी रचना संवत् १२६६ मा महेन्द्रसूरिना शिष्य धर्म नामना विद्वाने करी हती । आजे हुं अहिं, एवी ज एक प्राचीन तर गुजरातीनी अभिनव रासकृति प्रकाशमां मुकुं छु, जे उक्त बन्ने कृतियोनी मध्यमां स्थान प्राप्त करे छे । एनुं नाम "जीवदयारास" छे अने एनो कर्ता कवि आसिग छ । वि० सं० १२५७ना आश्विन सुदि ७ ना दिवसे, जालोर पासे आवेला सहजिगपुरमा एनी रचना करवामां आवी छे । एटले, उक्त शालिभद्रासनी रचना पछी १६ वर्षे, तेम ज जंबूस्खामिरासनी पहेला ९ वर्षे,
आ रास रचायो छे । बीकानेरना पुरातन जैनपुस्तक भंडारमांनी एक प्राचीन लिखित प्रतिमांथी आ रचना मळी आवी छे, जे प्रति सं०१४०० अने १४५० नी बच्चे क्यारेक लखाएली होवी संभवे छे । ए प्रति बीकानेर निवासी सुप्रसिद्ध साहित्यसेवी भाई श्रीअगरचन्दजी नाहटाद्वारा प्राप्त थई हती। ए प्रतिमां आवी अनेक प्राचीन भाषा-कृतियो तेम ज संस्कृत, प्राकृत अने अपभ्रंशनी पण प्रकीर्ण रचनाओनो संग्रह लखेलो छ । एनी लिपि सुवाच्य अने सुन्दराकार छे, पण वच्चे वच्चे केटलांक पानां जाय छे तेथी ए प्रति खंडितप्रायः छे। प्रतिमा जे अनेक प्रकीर्ण रचनाओनं आलेखन करेलुं छे ते उपरथी जणाय छे के 'विविधतीर्थकल्प' आदि अनेक ग्रन्थोना प्रणेता जिनप्रभसूरिना कोई शिष्य के प्रशिष्यनी ए 'खाध्याय-पुस्तिका' होय एम अनुमान थाय छे, अने तेथी ज में एनो लेखनकाल सं० १४०० थी ते १४५० नी वच्चेनो कल्प्यो छे। एटले के जीवदया रासना रचनासमय पछी लगभग दोढसो-बस्सो वर्षनी अंदर ज ए प्रति लखाएली छे । प्रतिना लिपिकार कोई सुपठित यतिजन लागे छे एटले भाषानी दृष्टिए तेमां खास पाठ-अशुद्धि थवा पामी नहि होय, छतां ज्यां सुधी बीजूं कोई प्रत्यन्तर प्राप्त थाय नहि त्यां सुधी एनी पाठशुद्धिनी कशी चोकस कल्पना करी शकाय नहि ।
३.१.२६.
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