Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 337
________________ अंक १] बुद्ध अने महावीरनुं निर्वाण [१८३ ८. अजातशत्रु वृजिओने दबाववानी योजना करे छे महापरिनिब्बान सुत्तन्त मां बुद्धनी जीवनयात्रानां छेल्लां वर्षों दरमियान बनेला बनावोनी माहिती मळे छे. ते सुत्तनी शरुआतमा ज (१,१) आ प्रमाणे वर्णन आपवामां आव्यु छे: "कोई एक समये भगवान (बुद्ध) गृध्रकूट उपर राजगृहमा परिभ्रमण करता हता. ते समये मगधनो राजा वेदेहीपुत्र अजातशत्रु हतो. वजिनोने जीतवानी इच्छाथी ए बोल्यो: 'आवा जबरा, बळवान वजिनोनो हुँ नाश करीश; वजिनोने हुं कचरी नाखीश; वजिनोने हुं कमनशीबीमा, अवनतिमां धकेली मूकीश.' आ 'वजिनो' गंगानी पेली पार मगधना पाडोशीओ 'वृजिओ' छे. एमनी राजधानी एमना प्रदेशनी पूर्व सीमा उपर आवेली वैशाली-जे हिंदना आ भागमां मोटामां मोटी अने सौथी वधारे धनवान-नगरी हती; ज्यारे मगधनुं मुख्य शहेर राजगृह तो हजी पहाडपर बांधलो एक किलो मात्र हतो, तेथी अजातशत्रुनी वृजिओने दबाववानी योजना बहु धृष्टता भरी हती-जे माटे अत्यंत संभाळपूर्वक तैयारी थवी जोईए. तेणे जे कंई पगलां लीधां ते विषे म०प० सु०मा उल्लेखो मळी आवे छे. पण ते बहु पाछळना वखतमां लखाया होवा जोईए; अने तेथी ते लगभग निरुपयोगी छे. ९. युद्धनी पूर्व तैयारी ओल्डनबर्ग अने हाइस् डेवीड्स् साथे ९ सम्मत थाउं छु के अजातशत्रुए वृजिओ सामेनी चढाई वखते आश्रय स्थान तरीके उपयोगमा लेवा माटे पाटलिग्राम नामक स्थान स्थाप्यु. जे पाछळथी पाटलिपुत्र नामे मुख्य शहेर थयु. पण म०प००(१,२८) प्रमाणे तो पाटलिपुत्र घणा लांबा वखतथी विशाळता पामेलुं हतुं, अने तेना संग्राहक गटलिपुत्र विषेनो पोतानो ए उल्लेख सर्वत्र दाखल करे छे अने मूळ परंपरानी संपूर्णपणे पुनर्घटना करे छे. त्यारे बौद्ध उपासकोए पाटलिनाममां एक आश्रय स्थान बंधाव्यु होवु जोईए, ज्यां तेमणे बुद्धने नोतर्या. आथी मनायुं के ते पाटलिग्राम काई नर्बु ज शहेर न होवू जोईए! वळी आथी विशेष आश्चर्यजनक तो ए छे के १,२६मा जणाव्या प्रमाणे मगधना महामात्यो सुनीध अने वस्सकारे पाटलिग्राम पासे वृजिओना निरोध माटे एक शहेर बंधाव्यु ! (सुनीधयस्सकारा मगधमहामत्ता पाटलिगामे नगरं मापेन्ति वजीनं पटिबाहाय). उपर जणाव्या प्रमाणे तो तेनु नाम पाटलिग्रामम् होवू जोईए, पण संग्राहके पाटलिग्रामे लख्यु, अने तेथी आ स्थान पासे ते शहेर बंधाववामां आव्युं तेममान्यु.पण तत्पश्चात् आवतुं वर्णन स्पष्ट साबीत करे छे के ते मुख्य शहेर पाटलिपुत्र ज छे! संग्राहकोनी आवी असंबद्धताओने लइने एमनां कथनोनां लगभग दरेक रहस्य लुप्त थाय छे. १०. वृजिओ विषे उपर जणाव्या प्रमाण गंगाना उत्तरना प्रदेशमा वसती एक जातिर्नु नाम वृजि हतुं. ते प्रदेशनी पूर्व सीमा उपर आवेलुं तेमनु मुख्य शहेर वैशाली.हतु. एसना उपरना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408