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१५६] भारतीय विद्या
[वर्ष ३ महाफला' -(मनुस्मृति) सर्व इंद्रियोनी तृप्ति द्वारा मनमा जे उल्लास आवे छै ते 'भृङ्गार' नी व्याख्यामां समाई शके. शृंगारनां बाह्य साधनो अनेक छे अने भौतिक सुखनी आसक्तिमां शृंगारर्नु मूळ छे. 'आसक्ति' नुं बीजं नाम 'काम' 'वासना' पण छे. क्रोध, मान, माया अने लोभ ए बधां भासक्तिनां संतानो छ. एवो कोईक ज विरल महासमर्थ मानव मळशे जे आसक्तिने वश न होय. बाकी जति जोगी ब्राह्मण श्रमण भिक्षु कवि पंडित मुनि संन्यासी फकीर बाल युवान वृद्ध रोगी एम समस्त मनुष्योमां कोईने कोई प्रकारे शंगारनी च्याप्ति देखाय छे ने देखावानी. आ रीते सारा ब्रह्मांडमा प्रधानतः एक शंगार रस ज प्रसरेलो छे. बीजा हास्य, करुणा, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत अने शांत ए बधा रसो पण जगतमां व्यापेला छे; परंतु शंगारनी अपेक्षाए एमनी व्याप्ति मर्यादित छे. वळी, 'शांत' सिवायना ए हास्यादिक रसो पण कोई अपेक्षाए शृंगार मूलक होय छे वा शृंगारना डाळां पांखडां जेवां होय छे. आरीते जगतमा व्यापकतानी अपेक्षाए सर्व रसोमां शृंग-शिखर-समान एक शृंगार-काम-ज छे. आम छे तेथी तो वात्स्यायन जेवा मुनिए पण 'कामशास्त्र'नी रचना करी. संस्कृत के प्राकृत साहित्यमां, गद्य वा पद्य एवा काव्यसाहित्यमां, प्रधानतः 'शंगाररस'नी व्याप्तिभरती-आवेली छे. शृंगारप्रधान कविता करनार कवि ऊपर केटलाक, 'चरित्रहीन' मो आक्षेप करवा तैयार थाय छे; परंतु खरी रीते तेम नथी. कवि तो ब्रह्मांडनीसमाजनी-परिस्थितिनो प्रतिबिंबक छे. जे स्थिति समाजमा प्रधानतः प्रवर्तती होय ते ज, तेनी कविताना आरिसामां झबके. कालिदास के जगन्नाथ ए बधा तो गृहस्थाश्रमी कविओ हता; परंतु जे काव्यो, विरक्त तपस्वी एवा जैन मुनि वा बौद्ध भिक्षुओए रचेलां छे तेमां पण कालिदासादिकने टपी जाय एवां शृंगारमय चित्रणो है. एटले एम थवानं कारण केवल श्रृंगार-प्रधान लोकस्थिति छे. प्रस्तुत रासमां पण ब्रह्मांडनो प्रधान नाद शृंगार वर्णवायेलो छे. रासकारे पोताना अभिमत शंगारना चित्रणमाटे एक विरहवती नायिका, संदेशवाहक पथिक तथा प्रवासे गयेलो नायिकानो पति-एवी त्रिपुटीनी भित्तिनो आश्रय लई पछी एमां ऋतुवर्णन वगेरेना रंगो पूरी रासने भभकदार बनावेलो छे. प्राचीन समयमा खेपियाओ के घडीए जोजनगामी सांढणीना अस्वारो
संदेशो लाववा लई जवान काम करता. ए खेपिया वगेरेमां गतिशक्ति (२) प्रबळ रहेती. वेगवाली गतिवाळो हंस, दमयंतीनो संदेशो नळ पासे संदेशरासक लई गयो छे जेनुं वर्णन श्रीहर्षे नैषधमां आपेलुं छे. पक्षिओमां संदेश ___ अने वहननुं सामर्थ्य, जो एमने केळववामां आवे तो, जरूर प्रगटी शके छे. मेघदूत पारेवां वगेरे पक्षिओ ए दृष्टिए केटला महत्त्वना छे ए वर्तमानयुद्ध द्वारा
आपणने प्रतीत थई गयुं छे. संस्कृत साहित्यमा मात्र संदेशो मोकलवा माटेज सर्वतः प्रथम कवि कालिदासे 'मेघदूत' रच्यु. पछी तो बीजां एवां पवनदूत वगेरे 'दूत काव्यो' रचायां. मेघदूतमां संदेशो मोकलनार शापभ्रष्ट यक्ष छे, संदेशो लई जनार मेघ छे अने संदेशो मेळवनार विरहिणी यक्षवनिता छे. संदेशरासकमां संदेशो मोकलनार, कोई धन कमावा जनार वेपारीनी, विरहिणी पत्नी छे, संदेशो लई जनार
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