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१५४ ] भारतीय विद्या
[वर्ष ३ सूत्रमा “उक्तं च" शब्द साथे सिद्धसेन दिवाकरना एक पद्यनो अंश उद्धृत थएलो मळे छे “उक्तं च - वियोजयति चासुभिर्न च वधेन संयुज्यते ।" जे पद्य तेमनी त्रीजी बत्रीशीना १६मां श्लोकमां आवे छे । ते आखं पद्य आ प्रमाणे छे
वियोजयति चासुभिर्न च वधेन संयुज्यते, शिवं च न परोमर्दपु (प)रुषस्मृतेर्विद्यते। वधायतनमभ्युपैति च परान्न निघ्नन्नपि,
त्वयाऽयमतिदुर्गमः प्रथ(श)महेतुरुद्योतितः ॥१६॥ देवनंदी दिगम्बर परम्पराना पक्षपाती सुविद्वान् छे ज्यारे सिद्धसेन दिवाकर श्वेताम्बर परम्पराना समर्थक आचार्य छ । ते वखतना कटोकटीवाळा साम्प्रदायिक वळणोनो विचार करतां एम मानवानुं प्राप्त थाय छे के एक सम्प्रदायना गमे तेवा सुविद्वान्नी कृतिने बीजा विरोधी सम्प्रदायमां सादर प्रवेश पामता अमुक चोक्कस समय लागे ज । - पूज्यपाद देवनंदीनो जे समय अत्यारे मानवामां आवे छे ते मारी दृष्टिए तो फरी ऊंडी विचारणा मागे ज छे । छतां अत्यारनी मान्यता प्रमाणे ए समय विक्रमनी छठी शताब्दीनु पूर्वार्ध छ । एटले के पांचमा सैकाना अमुक भागथी छठा सैकाना अमुक भाग लगी पूज्यपादनो समय लंबाय छे । पूज्यपादे दिवाकरनां ग्रन्थोनुं करेलुं सूक्ष्म अवगाहन अने दिगम्बर परंपरामां ए ग्रन्थोनी जामेली प्रतिष्ठा ए बधुं जोतां ऊपर जे सिद्धसेन दिवाकरनी पांचमी शताब्दीमां होवानी वातने वधारे संगत कही छे तेनो योग्य रीते खुलासो थई जाय छे । दिवाकरने देवनंदीथी पूर्ववर्ती के देवनंदीना वृद्धसमकालीन मानीए तोय तेमनो जीवन समय पांचमी शताब्दीथी अर्वाचीन ठरतो नथी।
तेथी में जे मारा सन्मतितर्कना गुजराती भाषान्तरमा धारणा बांधेली ते ज वधारे सल्यनी नजीक छे अने इंग्रेजी फोरवर्डमां जे नवी सूचना करेली ते निराधार ठरे छ । पूज्यपादनी सर्वार्थसिद्धिमाथी दिवाकरना पद्यांशनुं अवतरण मेळवी आपवा बदल हुं पं. महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्यनो आभारी छु ।
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