Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 311
________________ अंक १] कवि अब्दुल रहमानकृत सन्देशरासक [१५७ एक पथिक छ भने संदेशो मेळवनार ते विरहिणीनो पति छे. मेघ एक गतिमान पदार्थ छे परंतु ते द्वारा संदेशो पहोंचाडवो ए केवळ कविता गणाय. त्यारे आ रासमा संदेश पहोंचाडनाररूपे पथिकने कल्पता कधिए कविता द्वारा वास्तविकताने बतावी छे. मेघदूत अने प्रस्तुत रास ए बन्ने संदेशो मोकलवानां काव्यो छे. मेघदूतनुं वर्णन मनोविज्ञाननी दृष्टिए अने रसशास्त्रनी दृष्टिए विशेष उत्कर्षप्राप्त छे, परंतु ते केवळ पंडितभोग्य छे. त्यारे नायिकाना अने पथिकनी वृत्तिना भावोने व्यक्त करतुं आ संदेशरासकनी कवितानुं वर्णन जोके सीधुं अने सरल छे छतां ते लोकभोग्य छे ए तेनी विशेषता छे. मेघदूतमा यक्ष मेघने संदेशो कह्यो वगेरे वर्णव्युं छे परंतु ते मेघ, 'ए यक्षपत्नीने मळ्यो अने पछी शुं थयु' ए बधी हकीकतो कविना हृदयमांज रही गई छे; त्यारे आरासमां तो छेल्ले ए विरहिणी अने तेनो पति बन्ने एक बीजा मळी गया छ अने ते पण पथिकनो संदेशो पहोंचता पहेलांज अर्थात् संदेशो आपीने विरहिणी पत्नी पथिकने वळावीने पाछी वळे छे एटलामा तेनो पति आवी पहोंचे छे. ए रीते मेघदूतना अंत अने आ रासना अंतमां तारतम्य छ- मेघदूतना अंतमां यक्षनी इष्ट सिद्धि कविना मनमा छे त्यारे आ रासना अंतमां संदेशो मोकलनारनी इष्टसिद्धि प्रत्यक्ष चित्रित छे. रासकार विरहिणीद्वारा कहे छे के जलरहिय मेह संतविअ काइ, किम कोइल कलरउ सहण जाइ । . रमणीयण रस्थिहि परिभमंति, तूरारवि तिहुयण बहिरयंति ॥२१८ १ आ पद्योनो अनुक्रमे आ प्रमाणे अर्थ छे: पाणी वगरना मेघ कायाने संताप आपे छे, कोयलनो कलरव केम करीने सह्यो जाय । रमणीगण रथ्याओमां- शेरीओमां - परिभ्रमण करे छे, अने वाद्योना अवाजवडे त्रिभुवनने ब्हेरुं बनावे छे ॥ २१८ चाचरमां-खुल्ला चोकमां के चार मार्गो ज्यां भेगा थाय छे, त्यां अपूर्व वसंतसमयमां गीतध्वनि अने तालध्वनि साथे निबिड हारने पहेरेली, मेखलानी घूघरीओनो रणझणाट करती अने चारे बाजु खेलती एवी युवतिओ नाचे छे. ("चाचरमा रहेनारा लोको ताल तथा ध्वनि करीने पूर्वोक युवतिओ साथे नाचे छे" -टिप्पनकनो अर्थ)॥ २१९ आ वसंत ऋतुमां नवयौवनवाळी युवतिओ गाजे छे, एम में पतिने पामवानी-उत्कंठाने लीधे उक्त गाथा कही छे ॥ २२० __ आवा वसंत समयमां (के ज्यारे लोको रसपूर्ण -- रसथी तरबोळ बनेला छे) मारा ऊपर कंदर्प पोतानां बाणो फेंके छे अने मारा हृदयने अधिक संतापे छे ॥ २२१ हे पथिक ! हुं बहु दुक्खणी छु, मदननी ज्वाला तथा पतिविरहने लीधे विशेष सळगेली छं. आवी परिस्थितिमां में तने जे संदेशो कहेलो छे तेमां कठोर वचनो पण आव्यां हशे, परंतु तुं ते कठोर वचनोने छोडीने मारां कोमल वचनोने, विनयपूर्वक मारा पति पासे पहोंचाडजे अने तेनी साथे विनयनी रीते वात करजे जेथी ते प्रकुपित न थाय. ए रीते ते उत्तम स्त्रीए आशीष आपीने ते पथिकने विदाय आपी ॥ २२२ 'विंदाय आपीने जेवी ए स्त्री वेगथी पाछी फरी के तेणीए दक्षिणदिशा तरफथी मार्गने आवरतो पोतानो पति आवतो जोयो अने तेणी शीघ्र आनंदित थई. जेम ए दुक्खणी स्त्रीओचिंतुं कार्य सिद्ध थयु तेम आ रासने पढतां तथा सुणतां लोको, पण इष्ट सिद्ध थाओ अने अनादि अनंत परमेश्वर जयवंता रहो ॥ २२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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