Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 325
________________ अंक १] कवि अब्दुल रहमानकृत सन्देशरासक [१७१ वातनी खात्री होय के कर्ता हयात नथी किंतु कीर्तिशेष थयेलो छे, तो ए तेना मुखथी सांभळवानी संभावना न करी शके. एथी कदाच टिप्पनकार अने रासकार समसमयी होय एम बनवा जोग छे. अथवा टिप्पनकार पहेलां अल्प समयमांज रासकार अक्षरशेष थयेलो होय तो पण ए संभावना थई शके; परंतु घणा वधारे वखत पहेलां दिवंगत थयेला कर्ता विशे कोई एवी संभावना न करी शके. एथी टिप्पनकार अने रासकार वच्चे विशेष अंतर न होय एम तो बराबर जणाय छे. ए ऊपरथी अहीं जे रासकारना समयनी कल्पना करवामां आची छे ते असंगत नथी जणाती अने बीजु कोई बाधक वा साधक प्रमाण न मळे त्यां सुधी आ कल्पनाने अबाधित मानवामां हरकत नथी. टिप्पन अने अवचूरिका तथा तेना कर्ता प्रस्तुत रासनो प्रणेता तेना नाम उपरथी एक मुसलमान लागे छे त्यारे तेना ऊपर टिप्पन अने अवचूरिका करनार बन्ने जैन साधु छे. एक समय एवो हतो (6) ज्यारे जैनश्रुत सिवाय बीजां बधां श्रुतो-शास्त्रो मिथ्या छे एम मनायेखें रास ऊपरतुं एटले ए जैनेतर शास्त्रोनुं वाचन, मनन के श्रवण निषिद्ध मनायेलु साहित्य जोके हजु पण मान्यता ए ज चाली आवे छे छतां वच्चे बच्चे केटलाक जैन बहुश्रुत गीतार्थ पुरुषोए 'सम्मदिहिस्स सव्वं सम्मं सुयं, मिच्छद्दिहिस्स सम्वं मिच्छं' (जेमनी दृष्टि विशुद्ध छे एमने माटे बधां शास्त्रो सम्यक् छे भने जेमनी दृष्टि ज मिथ्या छे एमने माटे समीचीन शास्त्रो पण मिथ्यारूप छे) ए न्याये उदारता केळवेली अने बीजी बीजी परंपरानां शास्त्रोने अवगाही तेना उपर वृत्ति विवेचन वगेरे लखवानुं शरू राखवानी प्रथा पाडेली. ते प्रथा पण चाली आवे छे. जैन आचार्य हरिभद्रे दिङ्नागना न्यायप्रवेश ऊपर टीका रचेली छे. एज प्रमाणे भाचार्य मल्लवादीए धर्मकीर्तिना न्यायविन्दु ऊपर टिप्पण लखेलुं छे. भाचार्य माणिक्यचंद्रे मम्मटना काव्यप्रकाश ऊपर विवरण करेलुं छे. भासर्वज्ञना न्यायसार ऊपर श्रीजयसिंहसूरिए वृत्ति लखेली छे. दिगंबर परंपराना महान आचार्य विद्यानंदीनी अष्टसहस्री ऊपर उपाध्याय श्रीयशोविजयजीए विवरण लखेलुं छे. एम अनेक जैन आचार्योए बीजी बीजी परंपराना अनेक ग्रंथो ऊपर पोताना बुद्धिबळे अने ते ते शास्त्रोना अगाध अभ्यासने लीधे पोतानी उदार लेखिनी चलावी भारतीय साहित्यनी अभिनव सेवा करेली छे. मुनिपुंगव श्रीलक्ष्मीचंद्रे संदेशकरासन टिप्पन १४५६ ना विक्रम वर्षमां रचेलुं छे. आ बाबत कर्ताना समयनी चर्चामां आवी गयेली छे. टिप्पनकार जाते पोरवाड जैन हता, तेमना पितानुं नाम 'हालिग' अने मातार्नु नाम 'तिलब्वा' लखेलुं छे 'तिलष्वा'शुद्धरूप 'तिलाख्या' लईए तो तेमनी मातार्नु नाम 'तिलक-तलकबाई' होई शके, तेमनुं साधु अवस्थानुं नाम लक्ष्मीचंद्र, तेमना गुरुनुं नाम देवचंद्र अने तेमनो गच्छ रुद्रपल्लीय; आ बधी हकीकत टिप्पनकारे टिप्पननी समाप्ति थतां आपेली प्रशस्तिमां आपेली छे. टिप्पन लखवामां एमने 'गाहड' नामना क्षत्रियनी घणी ज सहायता मळेली छे ए पण एमणे कृतज्ञतापूर्वक प्रशस्तिमा जणावेलुं छे. आ विशेना श्लोको कर्ताना समयनी चर्चावाला मुद्दामा आपेला छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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