Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 324
________________ १७० ] भारतीय विद्या [ वर्ष ३ पटिं (टी)" अने अवचूरिकाकारे 'वरकों' ने बदले "वराकपटीं" एम कहेलुं छे.) रासकारे 'छे' अर्थनो द्योतक धातु, आ प्रमाणे वापर्यो छे : पृ० ६८ अच्छिहि - (छे) पृ० १५ आहि - (छे, हे के है अथवा आहे ) पृ० ३१ अच्छउं - (डुं) तादर्थ्य अर्थ माटे - चतुर्थीना अर्थ माटे रासकारे ( "नहु रहइ बुहा कुरुवित्तरेसि" - गा० २१, पृ० ९ ) 'रेसि' निपातने पण वापरेलो छे. जे विशे आगळ कहेवाई युं छे. प्रमाणे रानी भाषानो संक्षिप्त परिचय कराववा प्रस्तुत आ थोडं निवेदन कर्तुं छे. * समय - रासकारे पोताना समय विशे कशी माहिती आपी नथी; परंतु ferent पोतानो समय विक्रम संवत् १४५६ एटले पंदरमा सैकानो (७) मध्यकाल स्पष्टपणे जणावेलो छे: ( " श्रीमद् - देवेन्द्रशिष्यः शेर - रस रासकारनो - युग- भू- वत्सरे वृत्तिमेताम् । लक्ष्मीचन्द्रः चकार अखिलगुणनिधयः समय सूरयः सो (शो) धयन्तु " - पृ० ९० ) अर्थात् "देवेन्द्रना शिष्य लक्ष्मीचन्द्रे १४५६ना विक्रम वर्षमां आ वृत्ति बनावी छे. मूळ रास बन्या पछी आ टिप्पन, पचास वर्ष पछी बन्युं होय एवी संभावना करीए तो रासकारनो समय मोडामां मोडो चौदसा शतकनो प्रांतभाग वा पन्दरमा शतकनो प्रारंभ कल्पी शकाय अथवा एस पण बनवाजोग छे के रासकार भने टिप्पनकार, ए बने समसमयी पण होय. टिप्पकार अने रासकारना समसमयी होवा विशे पाको संवाद न गणाय एवं छतां कांईक टेको आपे एवं एक प्रमाण टिप्पनकारनी प्रशस्तिमां मळे छे. टिप्पनकार पोते एम लखे छे के "वृत्तिर्नाश्य (स्य) दशा वि (व्य) लोकि सुरे ( सुगुरोः ) पार्श्वे न चाऽभाणि च "नो कर्तुर्मुखतस्त्विदं भुवि मया चाश्रावि शास्त्रं कचित् । किन्तु क्षत्रियगाहडस्य मुखतो या या प्रवृत्ति ( : ) श्रुता सा सात्र मया विमूढमतिना वार्ता निबद्धा ननु " ॥ २ " यदन्यथा मया प्रोक्तं कश्चिदर्थस्तथा पदम् । तदहं नैव जानामि तज्जानात्येव गाइडः ॥ ३ अर्थात् - "आ 'संदेशकरास'नी वृत्ति क्यांय नजरे जोवामां आवी नथी, हुं- टिप्पनकार - कोई सारा गुरु पासे तेने भण्यो पण नथी, वळी कर्ताना मुखथी तो में आ शास्त्राने क्या सांभळ्युं नथी, फक्त 'गाइड' नामना क्षत्रियना मुखथी जे जे प्रवृत्ति सांभळी से से अहीं में विमूढमतिए गोंधेली छे भने एम छे तेथी माराथी कोई अर्थ के शब्द अन्यथा नोंधाई गयो होय तो तेनो जवाबदार हुं नथी पण ते गाहड ज जाणे." आमा टिप्पनकारे जे एम लखेलुं छे के "कर्ताना मुखथी में सांभळ्युं नथी" ए, स्वारे ज aat aare ज्यारे कर्ताना मुखथी सांभळवानुं संभवित होय, टिप्पनकारने ए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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