Book Title: Bhartiya Vidya Part 03
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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अंक १]
कवि अबदुल रहमानकृत सन्देशरासक [१६३ . 'एम करीने जेणे मने विरहना खाडामां घाली मूकी छे अने अर्थना लोभने वश थई जेणे मनै एकली करी मूकी छे, तेने आपवानो संदेशडो सविस्तर रीते मारे कहैवानो छे अने तुं उतावलो थाय छ, पथिक! तेने आ एक गाथा अने डोमिलक कही संभळावजे.' ९२
भारीते नायिका ए पथिकने जुदा जुदा छंदोमा एक ज तात्पर्यवालो संदेशो जुदी जुदी रीते वारंवार को जाय छे. वच्चे वच्चे पोतानी परिस्थितिनो-विरहव्यथानोख्याल भापती जाय छे अने पेलो पथिक 'मारे उतावळ छे' 'तुं मोडुं न कर' 'तारो संदेशो हुँ बराबर कहीश' अने 'तुं तारा नायक माटे विशेष खेद न कर, ए तेर्नु कार्य साध्या विना नहीं आवे अने कार्य सिद्ध थतां ज तुरत पाछो वळशे' वळी 'तारी पेठे ए पण तारे मादे जूरतो हशे' एम तेने सांत्वना भापतो जाय छे. आ रीते नायिका भने पथिक वञ्चेना संदेशासंबंधी कथनोपकथनमा बीजो प्रक्रम समाप्त थाय छे, अने तेमां वच्चे वच्चे रासकार श्लेषवाळां अने विविध अनुप्रासवाळां पयो गोठवी पोतानी प्रतिभा ठलवतो जाय छे. तेना संक्षिप्त नमूना आ प्रमाणे छे.
"तुय समरंत समाहि मोहु विसम ट्ठियउ, तह खणि खुवइ कवालु न वामकरट्टियउ। सिजासणउ न मिल्हउ खण खटुंग लय,
कावालिय! कावालिणि तुय विरहेण किय" ८६ "जइ मइ णत्थि णेहु ताकं तह, पंथिय ! कजु साहि मह कंतहं । जं विरहग्गि मज्झ णकंतह, हियउ हवेइ मज्झ णकंतह ॥ १०४ तणु दीउन्हसासि सोसिजइ, अंसुजलोहु णेय सोसिजइ ।
हियउ पउक्कु पडिउ दीवतरि । णाइ पतंगु पडिउ दीवंतरि ॥ १११ मा प्रकारनां काव्यचमत्कृतिनां अनेक पद्यो आ रासमां रासकारे योजेला छे. बीजा प्रक्रमने अंते नायिका ग्रीष्मऋतु ऊपर पोतानो रोष ठलवतां कहे छे के
"मुक्का हे जत्थ पिए उज्झउ गिह्मानलेण सो गिरो। मलयगिरिसोसणेण य सोसिजउ सोसिया जेण" ॥ १२९ अर्थात् - 'मारा प्रिये मने ग्रीष्म ऋतुमा मूकी दीधी छे-ते मने छोडीने ग्रीष्मऋतुमा चाल्यो गयो छे. तेथी ते ग्रीष्म ऋतु, ग्रीष्मनी धखधखती लू वरसती आगवडे बळीने खाख थाओ अने जे ग्रीष्म ऋतुए मने सूकवी नाखी छे ते ग्रीष्म पण मलयाचलना पवनवडे शोषाई जाओ' १२९. नायिका द्वारा ग्रीष्म ऊपर संताप वरसावी रासकार त्यार पछीना आखा त्रीजा प्रक्रममा छए ऋतुनुं वर्णन घणी ज सरस रीते करे छे. ऋतुवर्णननो आरंभ ग्रीष्मथी थाय छे अने अंत वसंतमां आवे छे. प्रथम ग्रीष्म गाथा १३०-१३८, पछी अनुक्रमे वर्षा गा. १३९-१५६, शरद गा० १५७१८३, हेमंत गा० १८४-१९१, शिशिर गा० १९२-१९९, वसंत २००-२२१. ऋतुवर्णनमां रासकारे ते ते ऋतुना वृक्षो, पुष्पो, पक्षिओ, जलाशयोनी परिस्थिति कुन्दचतुर्थी वगेरे खास खास ऋतुना उत्सवो; हस्त, अगस्त्य वगेरे विशेष ऋतुना नक्षत्रो, रमणीओनां ऋतुने अनुकूल रासरमणो-रासक्रीडाओ; ऋतुओमां रमणीओने
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