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कवि अब्दुल रहमानकृत सन्देशरासक
[एक अवलोकन] | ले० - अध्यापक श्रीयुत पं० बेचरदास जी० दोशी
आचार्य श्रीजिनविजयजी द्वारा जे अनेकानेक अपूर्व अने विविध विषयोवाळा
"संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, प्राचीन गुजराती आदि भाषाना ग्रन्थो अत्यारे संशोधित-संपादित थई प्रकट थवा तैयार थई रह्या छे, तेमां एक 'सन्देशरासक' नामनो पण अपूर्व ग्रन्थ छे. ए अपभ्रंश भाषामां रचाएली एक सुन्दर काव्यकृति २. वळी वधारे विशिष्टता तो एनी ए छे के एनो कर्ता एक अब्दुल रहमान नामनो कोई भारतीयेतर कवि छे जे धर्मथी कदाच इस्लामनो अनुयायी होय. संक्षिप्त संस्कृत टिप्पणी तेम ज ३-४ जूनी प्रतोनां बहुविध पाठान्तरो आदिथी समलंकृत थई थोडा ज समयमा ए ग्रन्थ प्रकट थवानो छे. ए मूळ ग्रन्थनां छपाएला पृष्ठो गुजरातीभाषा विषेना मारा युनिवर्सिटीनां व्याख्यानो तयार करती वखते, मारी विनंतिथी आचार्यश्रीए मने तेनो उपयोग करवा माटे मोकली आप्यां हतां अने साथे ए ग्रन्थना अवलोकनथी मने जे विचारो स्फुरी आवे तेनी एक नोंध पण लखी मोकलवा तेओश्रीए मने जणाब्युं हतुं. ए कृतिना अवलोकनरूपे एक नानकडो निबन्ध ज माराथी लखाई गयो जे आचार्यश्रीनी इच्छानुसार आ नीचे प्रकट करवामां आवे छे.
आ निबंधमां वक्तव्यनी क्रमयोजना आ प्रमाणे छे(१) शृङ्गार रसनुं स्थान (२) संदेशरासक अने मेघदूत (३) रासनो रचनाक्रम अने तेनुं वस्तु (४) रासकारनुं रचनाकौशल अने नम्रता (५) रासकारनो परिचय, रासकारनां नाम, पिता, कुल अने देश ६) आ रासनुं नाम अने रासनी भाषा (७) रासकारनो समय (८) रास अपरनुं साहित्य-टिप्पनक अने अवचूरिका (९) रासना छंदो (१०) रासनां पाठांतरो अने प्रतो संसारमा कुसुमशर पंचबाण कामदेव चक्रवर्तीनुं साम्राज्य प्रबळमां प्रबळ
छे. जे, संसार आखाने वश करी शके छे ते पण कामदेव पासे तो (१) 'गुलाम' ज होय छे. जगतमां नानुं के मोटुं कोई पण प्राणी एवं शृङ्गार रस, नथी जे कामदेवनी आज्ञाने वश न होय- वनस्पति जेवं मूढतम अने स्थान मानव जेवू पंडितवर जंतु ए बन्ने कामदेवने, जोतांज थरथरी ऊठे छे.
आम छे माटे ज मनुए कड्यु छे के 'प्रवृत्तिरेषा भूतानां निवृत्तिस्तु
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