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श्रीसिद्धसेन दिवाकरना समयनो प्रश्न
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ले० - आचार्य पं० श्रीसुखलालजी संघवी .
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आजथी लगभग बार वर्ष पहेला ज्यारे सन्मतितर्कनुं गुजराती भाषान्तर गुजरात विद्यापीठ तरफथी प्रसिद्ध थयुं व्यारे में तेनी प्रस्तावनामां सन्मतितर्कना कुर्ता सिद्धसेन दिवाकरना समयनो प्रश्न चर्थ्यो हतो । तेमां जूना मळी आवता प्रबन्धो, परम्परागत मान्यता अने साहित्यिक उल्लेखोने आधारे में सिद्धसेननो जीवनकाल विक्रमनी पंचम शताब्दी सिद्ध कर्यो हतो । प्यार बाद ज्यारे एज सम्मतितर्कना गुजराती भाषान्तरनो इंग्रेजी अनुवाद श्री श्रे० जैन कोन्फरन्स तरफथी प्रसिद्ध थयो त्यारे आजथी लगभग ६ वर्ष पहेलां फरी में ए इंग्रेजी अनुवादना फोरवर्डमा सिद्धसेनना समय विषेनो प्रश्न फरी विचारवानी सूचना ए दृष्टि कहती के ते वखते नवा प्रसिद्धिमां आवेला केटलाक बौद्ध ग्रन्थो जोतां मने एम लागेलुं के कदाच सिद्धसेननो समय पांचमी शताब्दीने बदले छठी के सातमी सुधी लंबा ।
परंतु त्यार बाद आ विचारास्पद प्रश्नने लगतां केटलांक बलवत् प्रमाणो मळी आव्यां छे जे ऊपरथी हवे एम मानवाने कारण छे के सिद्धसेन दिवाकरनो समय मारी प्रथमनी कल्पना अने गवेषणा प्रमाणे विक्रमनी पांचमी शताब्दीज वधारे संगत छे । ए नवा मळी आवेल प्रमाणोने आधारेज अहिं ट्रंकमा चर्चा करवा धारूं छं ।
सुप्रसिद्ध याकिनीसूनु हरिभद्रसूरिनो समय सुनिर्णीत करवानुं मान धरावनार आचार्य श्रीजिनविजयजीए ज आगमधर अने महाभाष्यकार श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमणना संदिग्ध समयने निश्चित कोटिमां मूकवानुं मान प्राप्त कर्यु छे । तेओ बे 1 वर्ष पहेला ज्यारे जेसलभेरना प्राचीन जैन ज्ञानभण्डारो जोवा अने तेमांधी सामग्री मेळवावा गया त्यारे तेमने त्यांथी श्रीजिनभद्रगणिना विशेषावश्यक महाभाष्यनी एक अति प्राचीन लिखित प्रति जोवा मळी । तेने अंते ते ग्रन्थनो रचनाकाल ग्रन्थकारे पोते ज आपेलो छे । तदनुसार ते ग्रन्थ विक्रम संवत् ६६६मां काठियावाड वलभीमां समाप्त थयो छे । एटले के जिनभद्रगणि विक्रमना सातमा सैकाना उत्तरार्धमा विद्यमान हता । जिनभद्र महाभाष्यकार कहेवाय छे अने तेमणे एकाधिक
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