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श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [७५ श्रद्धेय श्रीजिनविजयजी - सविनय प्रणाम. बम्बईसे आनेके बाद आपको मैंने शायद कोई पत्र नहीं लिखा । आपने पूज्य पिताजीका नया लाइन ब्लॉक बनवानेके लिये, उनका एक लाइन ड्रॉईंग बनवा कर भेजनेको कहा था। सो अब तक नहीं भेज सके। कारण हमारे artist की स्त्रीको थाइसीसकी बिमारी हो गई है सो वो करीब करीब अपने मुल्कमें ही रहता है। हम भी करीब डेढ महीनेसे कार्यवशात् कलकत्तेमें हैं। आप इस वख्त कहां है मालूम नहीं। यहां कलकत्तमें फाईल देखते देखते एक लाइन ब्लॉकका printed copy मिल गया; देखा तो मालुम हुआ कि यह नया बनवाया हुआ है। मगर बहुत तालाश करने पर भी न तो इसका original drowing मिला और न इसका Block, मालुम नहीं कहां गुम हो गया । जो कुछ भी हो यह drowing अगर आपको पसन्द हो तो इसीसे फिर Block बनवा कर काम चल सकता है। न मालुम क्यों और कब इस Block को बनवा कर . इसे यों ही रख छोडा गया । हमें तो इसमें कोई ऐब नजर नहीं आती । आप अगर पसन्द करें तो इसीसे ब्लॉक बनवा कर काममें लाना शुरू कर दें। - हमारी यह इच्छा आपसे प्रकट की थी कि आपके जेसलमेरके प्रवासका एक संक्षिप्त विवरण 'भारतीय विद्या' में प्रकाशित कर दें, ताकि इस विषयमें रस लेनेवाले लोगोंको यह जाहिर हो जाय कि आपने वहां जा कर क्या क्या देखा, क्या क्या कठिनाईयां झेली, कैसे कैसे उन सबोंको हल किया, किसकी सहायता मिली, कैसे कैसे अमूल्य ग्रन्थ भण्डारोंमें पड़े पड़े सड़ रहे हैं, उनके उद्धारका आंशिक रूपमें आपने कितना कार्य किया आदि आदि । अगर आपने इस विषयमें कुछ लिखा हो तो जरूर प्रकाशित करें। . यहां तथा अजीमगंजमें सब कुशल हैं। आपका स्वास्थ्य इन दिनों ठीक रहता होगा। नथमलजी इधर आये हैं उनके साथ श्रीपण्डितजीका पत्र मिला। उनको Carbuncle हो गया था सो उसी पत्रसे मालुम हुआ । अब ठीक है, उनको अलग पत्र दे रहे हैं। - नथमलजीको कलकत्ता युनिवर्सिटीसे नाहार स्कॉलर्शिप मिल गया है इसलिये आगे पर उनको रिसर्च तथा Ph. D. के लिये तैयारी करनेमें सुगमता रहेगी। शेष कुशल.
आपका विनीत-बहादुरसिंह भवनके लिये लाईब्रेरी लेनेको मेरा कलकत्ते जाना मैं जब जेसलमेरमें था, तब कलकत्ता युनिवर्सिटीके एक सुप्रसिद्ध निवृत्त प्रोफेसर
'बम्बई आये थे और श्रीमुंशीजीसे मिल कर उन्होंने अपना निजी विशाल ग्रन्थसंग्रह (लाईब्रेरी) यदि भवन खरीद करें तो, वे उसे देना चाहते हैं- इस बारेमें कुछ बातचीत की थी। साथमें उसकी कीमत भी उन्होंने सूचित की थी जो ५० हजार जितनी बडी रकम थी। भवनके लिये एक अच्छी लाईब्रेरीका होना नितान्त आवश्यक था। वास्तबमें ऐसी संस्थाका तो प्रधान प्राण, उत्तम प्रकारकी लाईब्रेरी ही मानी जाती है । उच्च कोटिके पुस्तकोंका अच्छा संग्रहवाली लाईब्रेरीके बिना ऐसी संस्थाका अस्तित्व वन्ध्यस्वका ही घोतक होता है। परन्तु ऐसी अच्छी लाईब्रेरी प्राप्त करना कोई सुलभ वस्तु नहीं है। उसके लिये काफी धनकी भी जरूरत रहती है और सतत उद्योगकी भी। मैं और
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