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८४] भारतीय विद्या
अनुपूर्ति [तृतीय - बम्बई पंहुच कर तुरन्त श्रीमुंशीजीसे मिला और सिंघीजीके स्वास्थ्य एवं किसी भच्छे डॉक्टरके ले जाने करनेकी बातचीत की। दो तीन दिनमें डॉ. श्रीनाथूभाई पटेलको ले जानेका ठीक किया गया और उसके लिये कलकत्ते तार दिया गया। वहां पर, मेरे निकले बाद एक बडे होमियोपाथ डॉक्टरकी दवाई शुरू की गई जिसका असर कुछ ठीक मालुम हुआ और इसलिये फिलहाल बम्बईसे डॉक्टरको न लानेका मुझे तार मिला।
मार्च १, ४४ का लिखा हुआ श्रीनरेन्द्रसिंहजीका एक पत्र मुझे मिला जिसमें बाबूजीकी तबियत कुछ कुछ ठीक होनेके समाचार थे। उन्होंने लिखा था__'पूज्य बाबूजी साहबकी तबियत पहलेसे बहुत ठीक है। पानी निकल गया है। केवल मुंहमें थोडा है। कमजोरी अभी भी है- लेकिन शायद out of danger हो गये हैं। गुरुदेवकी कृपासे इस दफहका संकट तो कट गया मालुम पडता है। माननीय मुन्शीजी, पण्डितजी, डॉ. मजुमदार सबसे पूज्य पिताजीका प्रणाम कहियेगा।
इससे मेरे मनको कुछ सन्तोष हुआ कि सिंघीजी अब इस प्राणघातक दशासे मुक्त हो जायंगे। उन्होंने मुझे एक दफह अपनी जन्मपत्रिकाका उल्लेख करते हुए कहा था कि 'हमारी आयु ६२-६३ वर्षकी हमारी पत्रिकामें बतलाई गई है।' इससे भी मुझे विश्वास बैठा कि ये अभी तो जरूर आरोग्य प्राप्त कर लेंगे। परन्तु कोई इसके एक पक्षके बाद श्रीनरेन्द्रसिंहजीका (ता. १८.३.४४ का लिखा हुआ) दूसरा पत्र मिला जिसमें बाबूजीकी तबियत फिर कुछ गडबडा गई है, इसके समाचार थे। उन्होंने लिखा था
... आपका पत्र पहुंचा। पूज्य पिताजीको पढ कर सुना दिया। पिताजी आप सबको-पूज्य पण्डितजी मोतीबहन वगैरहको-प्रणाम लिखाते हैं। उनकी तबियत बहुत कमजोर है । बीचमें २-३ रोज बगीचेमें जा कर बैठे थे बादमें इन्फ्ल्यु एंजाका एटेक हो गया व बहुत ही कमजोर हो गये हैं।' - एप्रीलके मध्यमें श्रीयुत नरेन्द्रसिंहजी कार्यवश बंबई आये तो उनसे बाबूजीकी प्रकृतिके विषयमें मालुम हुआ कि वह वैसी ही चली जा रही है। कभी दो दिन ठीक मालुम देती है तो चार दिन खराब । सुन कर मेरी चिन्ता बढी कि इस तरह तो अब ये कितने दिन निकाल सकेंगे । मेरा मन फिर कलकत्ते जानेको उत्कंठित हुआ। परन्तु इधर मुझे कुछ राजपूतानामें, राजस्थान साहित्य सम्मेलनकी समितिमें उपस्थित होना आवश्यक था इसलिये उस समय जाना बन नहीं पडा । मई, जूनके दो ढाई महिने, उदयपुर, अजमेर, पाटण, अहमदाबाद वगैरह स्थानों में जाने आनेके कारण मैं कलकत्तेसे कोई खास समाचार प्राप्त नहीं कर सका । इससे जुलाईके अन्तमें मैंने वहां जाना निश्चित किया।
सिंघीजीका स्वर्गवास मा ९ जुलाईको मुझे श्रीमुंशीजीका फोन मिला कि-सेठिया अधर्सके वहांसे (ता. मुझे अभी फोन आया है और कहा है कि परसों, (अर्थात् ७ तारीखको) कलकत्ते में सिंधीजीका स्वर्गवास हो गया ! उसके दूसरे दिन कलकत्तेसे, श्रीमान् राजेन्द्र
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