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८२] भारतीय विद्या
अनुपूर्ति [कृतीय जब वापस लौटूंगा तब मेरे साथ ही बंबई आनेकी उन्होंने तैयारी करली है। तब उन्होंने अपना सन्तोष प्रकट किया और कहा कि- 'हमारी इच्छा तो यही है कि अब आप दोनों साथ ही रहें तो अच्छा है।' इसी वार्तालापमें उनको एक वस्तु याद आई और अपने पास बैठे हुए परिचारकको बुला कर कमरेमेंसे एक फाईल मंगवा कर मुझे देखनेको दी। कहा 'मैं कई दिनोंसे आपको देखनेके लिये इसको भेजना चाहता था पर भेज नहीं सका । पण्डितजी जब अजीमगंजमें आये थे तब उनके साथ बातें चीतें करते हुए हमारे मनमें 'एक योजना' उत्पन्न हुई थी, जिसको हमने इस तरह लिख डाला है। आप इसे देख जाईये और इसके विषयमें कुछ सूचना आदि करने जैसी हो उसे इसमें नोट कर दीजिये । हमको इस विषयमें श्रीराजेन्द्रसिंह आदिसे कुछ चर्चा करनी है। कुछ ठीक हो जाने पर उन लोगोंसे विचार कर, इस योजनाको कोई निश्चित रूप देनेका अब हमारा खयाल हो रहा है।' यह कह वह फाईल मेरे हाथमें दी। [यह पूरी योजना परिशिष्ट में इसके पीछे दी गई है।]
कोई पूरे ३ घंटे हम साथ बैठे और यह अखंड वार्तालाप चलता रहा। बीच बीचमें शरीरकी स्थितिको लक्ष्य कर वे यह भी कहते जाते थे कि 'न मालुम हम अब कितने दिनके महेमान हैं-शरीरके लक्षण कुछ अच्छे नहीं दिखाई देते' आदि । आखिरमें, डॉ. रामरावने आ कर कहा कि 'आज आपने वार्तालापमें बहुत श्रम लिया है और अब ज्यादह नहीं बैठना चाहिये।' जिसे सुन कर मैं तुरन्त उठ खडा हुआ और अपने स्थान पर जानेको उद्यत हुआ। तब मुझसे कहने लगे कि - 'हम अभी तक उस नाहार लाईब्रेरीके विषयमें कुछ नहीं कर पाये हैं । क्यों कि आपका पिछली दफह यहांसे जाना हुआ उसके कुछ ही दिन बाद हमारा शरीर इस तरह खराब हो गया है और यह अभी तक वैसा ही चल रहा है । आप अब आये हैं तो नाहारजीके पुत्रोंसे इस विषयमें स्वयं बात चीत कर लें और उसका तय कर लें।' मैंने कहा 'आप इसकी अभी कोई चिन्ता न करें। मैं भी उसके विषयमें प्रयत्न करूंगा और फिर इसका विचार करेंगे।' बस यह कह कर मैं अपने कमरेमें चला गया और जा कर सो गया। नींद थोडी ही आनेवाली थी-शेष रात्रि यों ही शंका-कुशंकाके विचारों में व्यतीत हो गई।
एक तरहसे सिंघीजीके साथ मेरा इस प्रकारका यह आखिरी वार्तालाप था। इसके बाद उनके साथ फिर कोई ऐसा कार्यसूचक वार्तालाप न हो सका । दूसरे दिन डॉ. बाबूसे मालुम हुआ कि उनकी प्रकृति आज फिर कुछ अधिक खराब मालुम दे रही है। ये सारा दिन सोये ही रहे और कुछ विशेष अस्वस्थ मालुम दिये । दो दिन वैसा ही रहा; तीसरे दिन कुछ फिर जरा स्वस्थता मालुम दी। मैं पासमें गया और आधा घंटा बैठा रहा, पर कुछ विशेष बोले नहीं। लखनऊके एक नामी हकीमकी दवा चल रही थी उसको बन्ध किया। दूसरे डॉक्टरोंको बुलाया गया। उनके शरीर और चेहरा आदिका स्वरूप देख कर तो मुझे लग रहा था कि डॉक्टर लोग जैसा बीमारीका गंभीर रूप समझ रहे हैं वैसा तो कुछ अभी है नहीं। कुछ ट्रीटमेंटमें परिवर्तन होना चाहिये ऐसा मेरा खयाल हुआ। बाबूजी बोले 'हमने यहांके सभी नामी
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