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१२] भारतीय विद्या
[वर्ष ३ अतिप्रहर्षादथ शोकमूर्छिताः कुमारसंदर्शनलोललोचनाः।
गृहाद्विनिश्चक्रमुराशया स्त्रियः शरत्पयोदादिव विद्युतश्चलाः ॥ विलम्बकेश्यो मलिनांशुकाम्बरा निरञ्जनैर्बाष्पहतेक्षणैर्मुखैः । स्त्रियो न रेजुर्मजया विनाकृता दिवीव तारा रजनीक्षयारुणाः ॥
अरक्तताप्रैश्चरणैरनूपुरैरकुण्डलैरार्जवकन्धरैर्मुखैः। स्वभावपीनैजघनैरमेखलैरहारयोक्त्रैर्मुषितैरिव स्तनैः ॥
(अश्व० बुद्ध० सर्ग ८-२०,२१,२२) तस्मिन् मुहूर्ते पुरसुन्दरीणामीशानसंदर्शनलालसानाम् । प्रासादमालासु बभूवुरित्थं त्यक्तान्यकार्याणि विचेष्टितानि ॥ ५६ ॥ विलोचनं दक्षिणमञ्जनेन संभाव्य तद्वञ्चितवामनेत्रा। तथैव वातायनसंनिकर्ष ययौ शलाकामपरा वहन्ती ॥ ५९॥ तासां मुखैरासवगन्धगर्भाप्तान्तराः सान्द्रकुतूहलानाम् । विलोलनेत्रभ्रमरैर्गवाक्षाः सहस्रपत्राभरणा इवासन् ॥ ६२ ॥
(कालि० कुमार. सर्ग ७.) सिद्धसेनने गद्यमें कुछ लिखा हो तो पता नहीं है। उन्होंने संस्कृतमें बत्तीस बत्तीसियाँ रची थीं, जिनमेंसे इक्कीस अभी लभ्य हैं । उनका प्राकृतमें रचा 'सम्मति प्रकरण' जनदृष्टि और जैन मन्तव्योंको तर्क शैलीसे स्पष्ट करने तथा स्थापित करनेवाला जैन वाङ्मयमें सर्व प्रथम ग्रन्थ है। जिसका आश्रय उत्तरवर्ती सभी श्वेताम्बर दिगम्बर विद्वानोंने लिया है। ___ संस्कृत बत्तीसियोंमें शुरुकी पांच और ग्यारहवीं स्तुतिरूप है । प्रथमकी पाँचमें महावीरकी स्तुति है जब कि ग्यारहवीं में किसी पराक्रमी और विजेता राजाकी स्तुति है । ये स्तुतियाँ अश्वघोष समकालीन बौद्ध स्तुतिकार मातृचेट के 'अध्यर्धशतक,' 'चतुःशतक' तथा पश्चाद्वर्ती आर्यदेवके चतु:शतककी शैलीकी याद दिलाती हैं । सिद्धसेन ही जैन परम्पराका आद्य संस्कृत स्तुतिकार है । आचार्य हेमचन्द्रने जो कहा है ‘क सिद्धसेनस्तुतयो महार्था अशिक्षितालापकला क चैषा' वह बिलकुल सही है। स्वामी समन्तभद्रका 'स्वयंभूस्तोत्र' जो एक हृदयहारिणी स्तुति है और 'युक्त्यनुशासन' नामक दो दार्शनिक स्तुतियां ये सिद्धसेनकी कृतियोंका अनुकरण जान पड़ती हैं । हेमचन्द्रने भी उन दोनोंका अपनी दो बत्तीसियोंके द्वारा अनुकरण किया है। ___ बारहवीं शदीके आचार्य हेमचन्द्रने अपने व्याकरणमें उदाहरणरूपसे लिखा है कि 'अनुसिद्धसेनं कवयः' । इसका भाव यदि यह हो कि जैन परम्पराके संस्कृत कवियोंमें सिद्धसेनका स्थान सर्व प्रथम है (समयकी दृष्टिसे
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