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अंक १] उमाखातिका तत्स्वार्थ सूत्र और उनका सम्प्रदाय [१३३ अपने इस भाष्य-ग्रन्थकी रचना की थी, इसलिए वे आर्य चाणक्य या विष्णुगुप्तके सुप्रसिद्ध ग्रन्थ कौटिलीय अर्थशास्त्र (सूत्र और खोपज्ञ भाष्य )से अवश्य परिचित होंगे, जो पाटलिपुत्रमें ही निर्माण किया गया था और जिसके अन्त में लिखा है
दृष्टा विप्रतिपत्ति प्रायः सूत्रेषु भाष्यकाराणाम् ।
खयमेव विष्णुगुप्तश्चकार सूत्रं च भाष्यं च ॥ अर्थात् प्रायः सूत्रोंसे भाष्यकारोंकी विप्रतिपत्ति या विरोध देखकर, सूत्रकारका अभिप्राय कुछ था और भाष्यकारोंने कुछ लिख दिया, यह समझकर, विष्णुगुप्तने खयं सूत्र बनाये और स्वयं ही भाष्य । ___ इससे यह ध्वनित होता है कि चाणक्यके पहले भी इस तरहके कुछ सूत्र
और भाष्य रहे होंगे जिनमें उक्त विप्रतिपत्ति थी और उनसे भी उमाखाति परिचित होंगे। ऐसी अवस्थामें उनका स्वयं ही भाष्य निर्माण करनेमें प्रवृत्त होना खाभाविक है । ___ अपने ग्रन्थोंपर इस तरहके खोपज्ञ भाष्य लिखनेके उदाहरण और भी मिलते हैं। प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन उमाखातिसे पहले हुए हैं। उन्होंने अपने विग्रहव्यावर्तिनी' नामक ग्रन्थकी वयं व्याख्या लिखी है । उक्त मूल ग्रन्थ कारिकाओंमें हैं जो सूत्रकी ही भाँति अधिक बातोंको थोड़े शब्दोंमें कहनेवाली और पद्य होनेसे कण्ठस्थ करने योग्य होती हैं। इसी तरह वसुबन्धुका 'अभिधर्मकोश' है जो तत्त्वार्थं जैसा ही है और उसपर खोपज्ञ भाष्य है।
अपने ग्रन्थपर खोपज्ञ टीका लिखनेकी यह पद्धति जैन परम्परामें भी रही है । पूज्यपादने अपने व्याकरणपर जैनेन्द्र-न्यास (अनुपलब्ध), जिनभद्रगणिने अपने विशेषावश्यक भाष्यपर व्याख्या, शाकटायनने अपने व्याकरण-सूत्रोंपर अमोघवृत्ति
और तथा अकलंकदेवने अपने लघीयस्त्रय, न्यायविनिश्चय, सिद्धिविनिश्चयपर खोपज्ञ वृत्तियोंकी रचना की।
इन सब बातोंपर विचार करनेसे हम इसी परिणामपर पहुँचते हैं कि तत्त्वार्थभाष्य भी खोपज्ञ या मूलसूत्रक का ही होना चाहिए, किसी अन्यका नहीं ।
१- चाणक्यका समय ई• सन् से ३२५ वर्ष पहलेके लगभग है। २- नागार्जुनका समय वि० सं० २२३ - २५३ निश्चित किया गया है। ३- विनयतोष भट्टाचार्यके अनुसार वसुबन्धुका समय वि० सं० ३९४ है।
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