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१२६ ] भारतीय विद्या
[वर्ष ३ तत्त्वार्थसूत्र या तत्त्वार्थाधिगमको जैन-धर्मके दोनों सम्प्रदाय मानते हैं । इसपर जिस तरह दिगम्बराचार्योंने सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक आदि अनेक टीका-ग्रन्थ लिखे हैं, उसी तरह हरिभद्र, सिद्धसेनगणि आदि श्वेताम्बराचार्योंने भी अनेक टीकायें लिखी हैं।
तत्त्वार्थपर जो खोपज्ञ भाष्य है, श्वेताम्बर टीकायें उसीपर और उसीका अनुसरण करनेवाली हैं जब कि दिगम्बर-टीकायें तत्त्वार्थकी सबसे पहली टीका सर्वार्थसिद्धिका अनुसरण करती हैं, वे भाष्यानुसारिणी नहीं हैं।
दिगम्बर संप्रदाय केवल मूल तत्त्वार्थको ही उमाखातिकी रचना मानता है जब कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय भाष्यको और प्रशमरति, श्रावकप्रज्ञप्ति आदि और भी कई ग्रन्थोंको। ___ तत्त्वार्थके दो सूत्र-पाठ हैं, एक तो दिगम्बर-सूत्र-पाठ जो सर्वार्थसिद्धि-टीकामें मिलता है और जो उसके बादके सभी दिगम्बर टीकाकारोंको मान्य है और दूसरा भाष्य-मान्य सूत्रपाठ जो श्वेताम्बर सम्प्रदायमें प्रचलित है। पहले सूत्रपाठमें सूत्रोंकी संख्या ३५७ और दूसरेमें ३४४ है। दोनों सूत्रपाठोंमें सिर्फ तीन ही सूत्र ऐसे हैं जिनमें अर्थकी दृष्टिसे महत्त्वका अन्तर हैं, शेष सूत्रोंमें जो फर्क है वह बहुत ही मामूली, शब्द-रचनाका, एक सूत्रके दो बनाने, दो सूत्रोंको एक कर देने और संक्षेप या विस्तार करने आदिका है।
अर्थदृष्टिसे महत्त्वका पहला सूत्र है, चौथे अध्यायका खर्गोंकी १२ और १६ संख्या बतलानेवाला । दूसरा सूत्र है, पाँचवें अध्यायका कालको स्वतंत्र द्रव्य मानने न माननेवाला और तीसरा सूत्र है आठवें अध्याय का हास्य आदि चार प्रकृतियोंको पुण्यरूप मानने न माननेवाला । इन तीन सूत्रोंके पाठ
१-क्षेत्रविचार, जम्बूद्वीपसमास, पूजाप्रकरण, आदि और भी अनेक ग्रन्थ उमाखातिके बतलाये जाते हैं, परन्तु उनके विषयमें निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। हाँ, 'प्रशमरति' अवश्य प्राचीन ग्रन्थ है। उसकी तत्त्वार्थ-भाष्यके साथ बहुत समानता भी है। कहीं कहीं दोनोंके शब्द और भाव बिल्कुल मिलते जुलते हैं । भाष्यके प्रारंभ और अन्तकी कारिकाओंकी रचना-शैली भी प्रशमरति जैसी ही है । इसके सिवाय प्रशमरतिकी एक कारिका (२५वीं) जयधवलाकारने भी (पृ. ३६९) उद्धृत की है ।।
२-भाष्य-मान्यपाठका २० वाँ और दिगम्बरी पाठका १९ वाँ । ३ -३५ वाँ और ३९ वाँ।
४- “सद्वेद्यसम्यक्त्वहास्यरतिपुरुषवेदशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम् ।” “सद्वेद्यशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम् ।"
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