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वर्ष ]
श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [ ९१
जैन
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जैन परम्परामें सुयोग्य और बुद्धिमान व्यक्तियोंकी कमी नहीं है परन्तु इस क्षेत्रमें उनका लक्ष्य उतना नहीं गया है जितना कि जाना आवश्यक हो पड़ा है, और इसी कारण, समाज पुरानी और नई विद्याओंके बारेमें विशेष परावलम्बी बन गया है । वह दूसरोंकी विद्यासंबंधी तपस्याका कुछ मूल्य तो आंक सकता है परन्तु खेदका विषय है कि खुद उतनी तपस्या करनेमें रस नहीं लेता। इससे जैन समाजका विद्याविषयक अंग, जो भूतकालमें दूसरे दर्शनोंके मुकाबिलेमें विशेष बलवान गिना जाता था, अब निर्बल बन चुका है, या बन रहा है । और जो भारत के समान रूपसे विकाशकी दृष्टिसे भी अखरनेवाला है । यह कभी किसी अंशमें तभी दूर हुई मानी जा सकती है जब कि विद्याके उच्च सभी केन्द्रोंमें थोड़े बहुत सुयोग्य जैन भी प्रतिष्ठित हों, और भिन्न भिन्न विषयमें गौरवपूर्ण काम करते हों। यह वस्तु तभी संभव है जब कि इस दिशा में अनेक होनहार युवकोंका मनोयोग आकर्षित हो। इसके वास्ते सबसे पहली जरूरत है छात्रवृत्तिओंके द्वारा विद्यार्थीओंको उत्तेजन देनेकी । इस विचारसे मैं कुछ कायमी छात्रवृत्तियोंके निभावके निमित्त एक स्थायी कोष स्थापित करता हूं, जिसके व्याज या आमदनीसे नियमित रूपसे छात्रवृत्तियां प्रदान की जाया करें। आशा करता हूं कि मेरे उत्तराधिकारीयोंके द्वारा इस कोषमें यथासंभव वृद्धि ही होती रहेगी ।
जैन समाज के श्वेताम्बर - दिगम्बर मुख्य दो फिरकोंमेंसे दिगम्बर परंपरामें तो अनेक गृहस्थ पंडित और कुछ प्रोफेसर भी हैं । उस समाजमें अनेक योग्य विद्या - संस्थायें भी हैं; और गृहस्थ छात्रोंको उत्तेजन देनेवाले खास खास उदारचेता महानुभाव भी हैं । परन्तु श्वेताम्बर फिरके, खास कर उच्च कोटिके गृहस्थ विद्वानोंको तैयार करनेकी दृष्टिसे, न तो कोई संस्था है न कोई ऐसा कायमी उत्तेजन ही है । इसलिये इस अंगकी पूर्ति के निमित्त मेरी छात्रवृत्तिओं का क्षेत्र मैं परिमित ही रखता हूँ। तेरा पंथीओंको छोड कर मूर्त्तिपूजक और स्थानकवासी दोनों ही श्वेताम्बर हैं और दोनों ही में विशिष्ट गृहस्थ विद्वानोंकी कमी करीब करीब एकसी है । इसलिये मेरी छात्रवृत्तियोंका क्षेत्र उक्त दोनों फिरके रहेंगे।
कोषकी पूरी योजना नीचे लिखे अनुसार है
नाम - इस कोषका संक्षिप्त नाम "श्री सिंघी जैन कोष" रहेगा । उसका पूरा नाम “बाबू बहादुरसिंहजी सिंधी जैन कोष" रहेगा ।
उद्देश्य - इस कोषके मुख्य दो उद्देश्य हैं ।
१ अधिकारी विद्यार्थीयोंको निर्दिष्ट विषयके अध्ययनके लिये छात्रवृत्ति देना ।
२ सुयोग्य लेखकोंकी लिखी जैनविषयक पुस्तकोंके लिये पुरस्कार देना, और सुयोग्य विद्वानोंके द्वारा शिक्षा संस्था में निर्दिष्ट विषय पर व्याख्यान दिला कर उसे लेखबद्ध कराना और प्रकट करना ।
छात्रवृत्तिके अधिकारी - इस कोष से दी जानेवाली छात्रवृत्तिओंके अधिकारी नीचे लिखी योग्यतावाले और नीचे लिखे अनुसार अध्ययन करनेवाले होंगे ।
(१) जो संस्कृतके साथ मेट्रीक्युलेशन परीक्षा पास हों और आगे प्राच्यविद्या विभागकी किसी परीक्षाके साथ B. A. का अध्ययन करना चाहते हों ।
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