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वर्गस्थ सिंधीजीके कुछ संस्मरण [१०१ अगर वह बेचता तो दामकी दरकार न करके मी ले लेता । इसी धूनसे उन्होंने देहलीके बादशाही भण्डारकी कही जानेवाली अनेक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक और सचित्र पुस्तकें खरीद कर अपने संग्रहमें रखी हैं जिनमेंसे कुछ बादशाह जहाँगीरकी हस्तलिखित और उनके प्रसिद्ध चितेरेके द्वारा चित्रित भी हैं। उनके संग्रहमें अनेक चीजें लखनऊ और मुर्शिदाबादके नवाबोंके भण्डारमेंसे भी आई हुई हैं जिनके वास्ते सिंधीजीको बहुत श्रम और खर्च करना पड़ा है । वे १९२६ ई० की गरमीमें जैन कॉन्फरेन्सके अधिवेशनपर बंबई आये थे। पर उनकी मुख्य प्रवृत्ति तो पुरानी चीजोंके संग्रहकी ओर ही थी । जुदा होते समय कुछ पैसेका प्रश्न आया तो वे कहने लगे कि अभी तो हमारे पास खर्ची कलकत्ते पहुँचने जितनी ही रह गई है। मैंने आश्चर्यसे पूछा कि 'आपकी जेब तो भरी रहती है फिर ऐसा क्यों? उन्होंने कहा 'हमारे व्यसनने खिस्सा खाली कराया। कितनी खरीद की! इस प्रश्नके जवाबमें उन्होंने कहा कि 'करीब ४५००) रूपयेकी चीजें खरीद चुका हूँ। अब अधिक रहना हुआ तो पैसा मंगाना पड़ेगा।' क्या क्या और कैसी चीजें मिली ? इसके जवाबमें उन्होंने सब ब्यौरेवार वर्णन किया तो मैंने कहा कि 'अमुक अमुक पोथी या चीज तो निकम्मी है। उन्होंने कहा कि 'उन चीजोंमें जो थोड़ी वस्तुएँ मुझे मिली हैं वे ही मेरी दृष्टिसे मूल्यवान् हैं' - ऐसी चीजोंके साथ थोडा कूड़ा कर्कट तो आ ही जाता है । वे १९४३ की अन्तिम यात्राके समय बंबई आये थे। तबीयत ठीक नहीं थी; पर मोटर लेकर वे अपने परिचित पुरानी चीजोंके व्यापारिओंके घर जाते थे। पुस्तक, चित्र, सिक्का कारीगरीके नमूने आदि जो कुछ नया-पुराना अच्छा मिला उसे परीक्षापूर्वक खरीद लेते । छोटी उम्रमें चित्तपर पड़े खोजके बीजने आर्थिक अभ्युदय और ज्ञानवृद्धिके साथ साथ इतना अधिक विकास साधा कि जिसे हम उनका असाधारण संग्रह देखकर एक वटवृक्ष कह सकते हैं।। - सिंधीजीका संग्रह सिक्कोंकी दृष्टिसे विश्वभर के ऐसे संग्रहोंमें शायद तीसरे नम्बर पर आता है । जिसमें जुदे जुदे सब समय के, सब धातुओं के सिक्के हैं। उनके संग्रहकी दूसरी चीजें मी वैसे ही महत्त्वकी हैं । कोई मी ऐतिहासिक या पुरातत्त्वविद् सिंधीजी के संग्रहको विना देखे अपनी कलकत्तेकी यात्राको पूर्ण नहीं मान सकता था।
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