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वर्ष ]
स्वर्गस्थ सिंघीजीके कुछ संस्मरण [ १०७
निवृत्त थे, उनसे मिले । जब उस वृद्ध पुरुषने कन्या विद्यालयको दिखाया जिसमें एक अलग विघवा विभाग भी था, तो बाबूजीने विना मांगे ही अमुक दान देने को कह दिया । परापूर्व से अजीमगंज कलकत्ता आदिमें खास कर मारवाड़ी समाजमें पर्देकी प्रथा है जो सिंघीजीके घरमें भी चली आती है । पर पिछले वर्षो में मैंने देखा कि उनके घर पर वह प्रथा बहुत शिथिल हो रही है और उसे वे ठीक भी समझते थे । वे मुझे कहते थे कि स्त्रियाँ साहस करें तो हमको कोई आपत्ति नहीं ।
योगाभ्यास
सिंघीजीने अपने पितासे योगप्रक्रियाका अभ्यास भी किया था । बड़े बाबूजी अमुक हद तक योगप्रक्रिया जानते थे और वे यथासंभव घरमें सीखाते भी थे । एक बंगाली महानुभाव थे जो इस विषय में बड़े बाबूजी के गुरु थे। बड़े बाबूजीकी इच्छा थी कि बहादुरसिंह उनसे और भी अधिक सीखे । पर मुझको सिंधीजी कहते थे कि 'मैंने जो अभ्यास कर लिया था उससे आगे सीखनेके लिये उस बंगाली महानुभावके पास अवकाश न था ।' सिंघीजी आबूनिवासी शान्तिविजयमहाराजके भक्त थे। मैंने उनसे उक्त महाराजजी और उनकी योगशक्तिके बारेमें पूछा था कि 'आपको कैसा अनुभव है ?" तो उन्होंने कहा था कि शान्तिविजयजी महाराजका योगाभ्यास उस बंगाली महानुभावकी अपेक्षा अवश्य अधिक है । मैंने उनको शान्तिविजयजी महाराजके सुनाई देनेवाले चमत्कारोंके बारेमें भी पूछा था तो उन्होंने सच सच जैसा अनुभव वे कर चुके थे कह बताया था। पर इतना निश्चित है कि शान्तिविजयजी महाराजके प्रति उनका आदर पर्याप्त था । फिर भी वे कहते थे कि 'महाराजजी कोई काम व्यवस्थित कर नहीं सकते।' मैंने एक बार पूछा कि 'आपने योगप्रक्रियाका परिणाम अपने जीवनमें प्रयोग करके कभी देखा है ?' उन्होंने हाँ कहते हुए कहा कि 'केन्सरके भयसे मुखमें एक बार मुझे बड़ा ऑपरेशन करना पड़ा । यूरोपियन तथा देशी बड़े बड़े सर्जन थे । घर पर ही ऑपरेशन हुआ। डॉक्टरोंने जब क्लोरोफोर्म देना चाहा तो मैंने कहा कि क्लोरोफोर्म की कोई जरूरत नहीं । आप लोग बेधड़क अपना काम कीजिए । मैं निष्कम्प स्थिर रहूंगा । तिसपर भी बीचमें आप लोग जरूरत समझें तो खुशीसे दवाई सुंघाना ।' उन्होंने अपने योगाभ्यास के अनुसार जीभ आदिका विनियोग अमुक स्थानमें किया। ऑपरेशन बहुत सख्त था; करीब पौना घंटा
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