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वर्ष]
स्वर्गस्थ सिंघीजीके कुछ संस्मरण [१०९ रखा था। उसे वे अच्छे ढंगसे तैयार करके छपाना चाहते थे । १९३९ ई० में जब मैं मिला तो उनसे कहा कि 'जब नकशा तैयार करना ही है तो साथ साथ उन पुराने गांव, कस्बे, शहर, नदी, आदि सब स्थानोंकी भी जांच क्यों न करवावें कि उनमेंसे कौन कैसी हालतमें है ? आज कल उसका क्या नाम है ? और वह है या नहीं ? -- इत्यादि । ऐसी जांच करानेसे कल्पसूत्रके उस पुराने वर्णनकी ऐतिहासिकताका भी बहुत कुछ पता चल जायगा और वह नकशा एक प्रमाणभूत वस्तु बन जायगा । उनको मेरी बात पसंद आई और तुरन्त ही कहा कि 'इस जांचके लिये आदमी खोजिए । पूरे साधनके साथ वह पादविहार करके जगह जगह घूमे और देखे। चाहे जितना खर्च हो मैं करूंगा। उस समय कार्यक्षम सुयोग्य व्यक्ति प्राप्त करनेका मेरा प्रयत्न सफल होता तो आज उनकी कल्पनाका वह नकशा लोगोंके सन्मुख होता । - वे देश परदेशके सचित्र पत्र-पुस्तक देखते रहते थे। उनमें देखी हुई और वर्णन की गई जुदी जुदी वस्तुओंके ऊपरसे सिंधीजीने एक फवारा बनाना चाहा । डिझाईन के अनुसार काम शुरू कराया, क्या करना, कैसे करना इत्यादि सारी सूचनाएँ कारीगरोंको वे खुद करते थे । अन्तमें उनकी कल्पनाका वह फबारा बन गया जो उनके मकान सिंघीपार्कमें कलकत्तमें विद्यमान है और उनकी कलावृत्तिका द्योतक है । कोई चीज उन्हें अशोभनं पसंद नहीं आती , थी । इसीसे दस हजार का बजट पचीस हजार तक पहुंचा पर फबारेको मनमाना बना देखकर उन्हें खर्च नहीं अखरा ।
सिंघीजीने अपने तीन पुत्र और एक खुदके वास्ते इस तरह चार बंगलोंका नकशा खयं ही तैयार किया था । लडाई छिड़ जानेसे जो अभी कागज पर ही है । परंतु उनकी बनवाई एक स्मरणीय वस्तुका उल्लेख करना आवश्यक है । उनके बंबई वासी एक मित्र चाहते थे कि पावापुरी जलमंदिरका पुराना पुल यात्रिओंके लिये ठीक नहीं है। इससे नया और अच्छा पुल बनवाया जाय । उस मित्रने यह काम सिंघीजीको सौंपा । सिंधीजीने पत्थर कारीगरी आदिका निश्चय करके आगरासे कारीगर और पत्थर मंगवा कर पावापुरीमें एक सुंदर नया विशाल पुल कलकत्तेमें ही बैठे बैठे अपनी सूचनाके अनुसार बनवाया । परन्तु शोक इस बातका है कि वे उसे अपनी आंखोंसे देखनेका मनोरथ पूरा कर न सके।
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