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श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण
अनुपूर्ति - सिंघीजीकी लिखी हुई 'एक योजना'
मैंने अपने स्मरणोंमें, पृ० ८२ पर, सिंघीजीने मुझे अपनी आखिरी मुलाकात में जिस ' एक योजना' को देख जानेके लिये देनेका जिक्र किया है, वह योजना यहां पर दी जाती है। यह योजना संपूर्ण सिंघीजीके अपने हाथकी लिखी हुई है। इसको मैंने उस समय तो यों ही देख कर वापस कर दी थी। क्यों कि उसके बाद, उनसे इस बारे में बातचीत करने जैसी परिस्थिति ही नहीं रही । उनके स्वर्गवासके पश्चात्, जब मैं पिछले सप्टेंबर में कलकत्ता गया तब उनके कागजातोंमें यह योजना मिली तो उनके सुपुत्रोंने मुझे इसका उपयोग, उनके पुण्यस्मरणोंमें करनेके लिये दी ।
यह योजना सिंघीजीके ज्ञानप्रिय हृदयकी एक विशेष भावना प्रकट करती है । उन्होंने जिस प्रकार ग्रन्थोंके उद्धार के लिये 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला' की स्थापना की, उसी प्रकार जैन संस्कृति और जैन साहित्यके विषयमें प्रावीण्य संपादन करनेवाले कुछ विद्वानोंको तैयार करनेकी भी उनकी उत्कृष्ट मनशा थी और इस दृष्टिसे वे कई अभ्यासियों को स्कॉलर्शिप वगैरहकी मदद सदैव दिया करते थे । परन्तु बनारसमें पण्डितजीके रहने से उनके पास अनेक ऐसे विद्यार्थी आते रहते थे जो इस प्रकारकी नियमित स्कॉलर्शिप और छात्रवृत्तिके इच्छुक और अधिकारी दृष्टिगोचर होते थे । ऐसे योग्य छात्रोंको आर्थिक उत्तेजन दे कर, उनको अपने अध्ययनमें विशिष्ट प्रकारकी सफलता प्राप्त करनेमें उत्साहित करना चाहिये जिससे भविष्य में हमको - समाजको अच्छे विद्वानोंकी प्राप्ति सुलभ हो - इस प्रकारका परामर्श सिंघीजीको पंडितजी वारं. वार दिया करते थे। इधर 'भारतीय विद्या भवन' में भी मेरे पास पोष्ट ग्रेज्युएट विभाग में और संस्कृत विभाग में उच्च अध्ययनाभिलाषी विद्यार्थी आने लगे और जिनको भवनने अच्छी योग्य छात्रवृत्तियां देनेका उपक्रम चालू किया, तब मैंने भी सिंघीजी से कुछ ऐसे छात्रोंको उनकी ओरसे नियमित और व्यवस्थित छात्रवृत्तियां दी जानेकी प्रेरणा की । इसके परिणाम में उन्होंने अपनी यह 'एक योजना' तैयार की थी जिसको कार्यान्वित करनेके पूर्व ही वे दिवंगत हो गये और यह योजना यों ही कागज पर लिखी पडी रही !
इस योजनाका उद्देश बतला रहा है कि सिंघीजी एक ऐसा ट्रस्ट बनाना चाहते थे जिसकी आय में से उनकी इस प्रस्तावित योजनाका ध्येय सफल होता रहे । यद्यपि उनका स्वर्गवास हो गया है और वे अब इस योजना की सफलता देखनेके लिये पार्थिव शरीरसे हमारे बीच में विद्यमान नहीं है, तथापि उनका पुण्यवान् आत्मा परलोकके पवित्र धाममें स्थित हो कर अपनी आन्तरिक दृष्टिसे हमारे कार्यों का अवलोकन अवश्य कर रहा होगा । उनके सत्पुत्र अपने पिताकी इस अन्तिम योजनाको कार्यान्वित करनेका संपूर्ण सामर्थ्य रखते हैं और मैं आशा रखता हूं कि वे जरूर इसे सफल करेंगे ।
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मुझे यह लिखते हुए हर्ष होता है कि उनके चिरंजीवोंने भारतीय विद्या भवनान्तर्गत 'सिंघी जैनशास्त्रशिक्षा पीठ' के तत्वावधानमें जैन साहित्य और संस्कृति विषयक उच्च अध्ययन करनेवाले विद्यार्थीयोंके उत्तेजन निमित्त, मासिक १०० रूपये स्कॉलर्सप देना निश्चित किया है ।
यही यथार्थ पितृतर्पण है ।
३.१२.
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