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वर्ष ]
श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [७३ साथकी पार्टिको भी दूसरी दरबारी लॉरीमें बिठा कर स्टेशन पर पहुंचानेकी आज्ञा की । रातको १० बजे हम मारवाड राज्य (जोधपुर)के रामदेवरा स्टेशन पर पहुंचे। दूसरे दिन प्रातःकालकी गाडीसे रवाना हो कर ता. १ मईको १२ बजे वापस अहमदाबाद पहुंचे।
मेरा तत्काल बम्बई जाना और सिंघीजीका भी वहां आ पहुंचना ! जैसा मैं अहमदाबाद पहुंचा कि उसके दूसरे ही दिन बंबईसे श्रीमुंशीजीका बहुत
"जरूरी पत्र मिला जिसमें इन्होंने भवनके एक आन्तरिक प्रबन्धकी समस्याके लिये मुझे तत्काल बंबई आनेकी सूचना दी। ता. ३, मईको रवाना हो कर मैं बंबई पहुंचा। दो-एक दिन स्वस्थ हो कर मैं सिंधीजीको पत्र लिखनेका विचार कर रहा था, उतनेमें ता. ६ की रातको ८ बजे मुंशीजीका मुझे टेलीफोन मिला कि 'सिंघीजी आज कलकत्तेसे यहां पर, सेठिया ब्रधर्सके वहां लग्नप्रसङ्गके सबबसे आये हैं, और अमुक जगह ठहरे हैं।' मैंने तुरन्त वहां पर फोन किया और उनकी खबर निकाली। मेरी इस तरह बम्बईमें अचानक उपस्थिति जान कर उनको आश्चर्य हुआ । क्यों कि वे समझते कि मैं तो शायद अभी तक जेसलमेरमें ही बैठा हूं । इस प्रकार अकस्मात् उनका और मेरा बंबई आ पहुंचना-हम दोनोंको बडा हर्षदायक हुआ। दूसरे दिन सवेरे ही हम दोनों, उनके स्थान पर मिले और फिर तुरन्त मुंशीजीके मकान पर जा पहुंचे। उसी दिन, उसी समय, भवनके लिये यह जो नया मकान (हारवे रोड पर) किराये पर लिया गया, उसमें वास्तुविधि करनेका मुहूर्त था। सो हम सब सिंघीजीको साथ ले इस मकानमें आये और उनकी उपस्थितिमें मंगलकर वास्तुमुहूर्त संपन्न हुआ। मेरे मनमें उसी क्षण यह भाव उठा था, कि सिंघीजी जैसे पुण्यवान् मनुष्यकी जो इस प्रकार, इस शुभ मुहूर्तमें, ऐसी अकस्मात् और अकल्पित उपस्थितिका हमको लाभ प्राप्त हुआ है, इससे इस स्थानमें, भवनका भावी जरूर सविशेष अभ्युदयकारक होना चाहिये। - इसके बाद, यथावसर वारंवार मेरी, मुंशीजीकी और सिंधीजीकी मीटींगें होने लगी और सिंधी जैन ग्रन्थमाला' का भवनके साथ जो संयोजनीकरण करनेका पिछले १०.१२ महिनोंसे विचार - विनिमय और पत्रव्यवहारादि हो रहा था, उसका सब कुछ, प्रत्यक्षमें बैठ कर आखिरी निर्णय कर लेनेकी बातें सोची जाने लगी। पण्डितजीको भी बनारस तार दे कर बंबई बुला लिया गया और इस तरह हम चारोंने साथमें बैठ कर, ता. ११ मईको ग्रन्थमाला और भवनके सम्बन्धका अन्तिम निर्णय किया और उसके लिये लिखे गये एग्रीमेंटके दस्तावेज पर, सिंघीजीने अपने शुभ हस्ताक्षर कर उसको प्रमाणित बनाया।
भवनके सब प्रमुख सदस्योंका सिंघीजीको परिचय करानेके लिये, मुंशीजीने एक दिन अपने वहां चहापार्टीका भायोजन किया तथा एक दिन सबको भोजनके लिये
भी आमंत्रित किया गया। इस तरह अपनी ग्रन्थमालाको भवनके हाथमें समर्पण कर सिंधीजी निश्चिन्त बने और उसकी भावी प्रगतिके विषयमें मुझको प्रोत्साहित देख कर प्रसन्न हुए। सब कार्य संपन्न होने पर ता. १२ मईको नागपुर मेलसे वे कलकत्ताको रवाना हुए।
३.१०
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