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३०] भारतीय विद्या
अनुपूर्ति [ तृतीय भी उन्होंने देखा और मैंने उन्हें पढ़ कर, और साथमें उनका अर्थ भी करके सुनाया। बाहर निकल कर सर सेतलवडने मि. जिन्नाको कहा कि अन्दर कुछ कामके शिलालेख हैं जिनको मैंने गौर करके देखा है। इस पर जनाब जिनाने कहा कि चूंकि मैं अन्दर नहीं जा सकता और उनको देख नहीं सकता, इसलिये मैं उनके बारेमें कुछ नोट नहीं लेना चाहता। ऐसी और भी बहुतसी बातें वहां देखी-सुनी गई जिनके विषयमें जिन्ना साहबकी समझमें कुछ नहीं आया और वे विमनस्कसे हो गये। उसके दूसरे दिन हम सब लोग उदयपुर राज्यकी सबसे बड़ी झील जयसमुद्र-जो उदयपुरले कोई ३०-४० मीलकी दूरी पर है- देखने गये। झीलमें इधर उधर घूम आनेके लिये एक छोटीसी नौका रखी हुई थी, जिसमें सर् सेतलवड, मि. जिला तथा उनकी बहन, सिंघीजी, मैं और कुछ दो-एक और सजन सवार हुए। सिंधीजीने मुझसे धीरेसे कहा कि 'यह खूब मौका आया है जिसमें सर् सेतलवड और मि. जिन्ना जैसे दोनों परस्पर विरोधी राजकीय दलके नेता एक साथ एक नैयामें बैठे हुए हैं। पर वे दोनों परस्पर चूप थे। कोई बातचीत करना पसन्द नहीं करते थे। मैंने यों ही मखौल करते हुए कहा कि 'जिन्ना साहब! यह क्या ही अच्छा हो, यदि आप और सर सेतलवड दोनों इस एकान्त और प्रशान्त स्थानमें हिंदुस्थानकी राजकीय आजादीका कोई अच्छा रास्ता ढूंढ निकालनेका तरीका सोचें और देशकी राजकीय नैयाको दोनों परस्पर विरुद्ध दिशामें धकेलते रहनेकी कोशीशके बदले, अपनी इस नैयाको चलानेवाले आगे और पीछेके दोनों मल्लाहोंकी तरह, एक ही दिशामें उसे चला कर किनारे पहुंचानेका सत् प्रयत्न करें।' मि. जिन्नाने हँसते हुए कहा-'उस नावमें हम अकेले दो ही तो नहीं है. बीचमें (मुझे लक्ष्य कर कहा) आपके जैसे खबरधारी भी तो बहुत बैठे हैं जिनको कहां जाना है इसका कोई पता ही नहीं है और मौका मिल जाय तो हम दोनोंको उठा कर झीलके बीचमें डूबो देना चाहते हैं । इसलिये किसी किनारे पहुंचनेकी अपेक्षा अभी तो हमको अपनी जान ही बचानेकी फिक्रमें मशगूल रहना पडता है। Is'nt true sir Chimanlal ? (क्या यह सच नहीं है सर् चिमनलाल ?) ऐसा कह कर उन्होंने सर् सेतलवडको सम्बोधित किया। मैं और सिंघीजी दोनों हंस पडे । इतने ही में नाव तालावके किनारे पहुंच गई और हम सब उसमेंसे उतर कर, अपनी अपनी मोटरोंमें बैठ, रास्ते पड़े।
कॉन्सलोंका बदलना जैसा कि मैंने उपर सूचित किया केशरियाजीके केसकी सुनवाई बहुत दिनतक होती रही और उसमें अनेक तरहके ऐतिहासिक और सांप्रदायिक प्रश्न उपस्थित होते रहे । मि. जिन्नाने फिर आनेसे इन्कार कर दिया और इधर सर सेतलवड भी उकता गये। इसलिये उन्होंने भी अपनी ब्रीफ अपने पुत्र श्रीमोतीलालजी सेतलवडको देनेका अपना अभिप्राय हम लोगोंसे प्रकट किया और यदि श्रीमोतीलाल न आ सकें तो फिर श्रीमुंशीजीको बुलानेका अभिप्राय दिया। हम लोगोंने अनुभव किया कि केसको चलानेमें सर् सेतलवडको बहुत कष्ट हो रहा है और जिस प्रकारके पुरावों और प्रमाणोंकी वहां उपस्थिति होती रहती हैं वे बहुत ही पारिभाषिक और सांप्रदायिक
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