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वर्ष
श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [३१ अर्थवाले होनेसे उनका हार्द और भावार्थ समझने-समझाने में उनको बहुत त्रास होता है । इसलिये किसी अधिक उत्साही कॉन्सलको बुलाया जाय तो ठीक हो । सर् सेतलवडको सब प्रमाण समझानेका काम मेरे पर था। कोर्ट में उनके बराबरमें मेरी कुर्सी लगी रहती थी और बादमें हमारे पक्षके अन्य बेरिस्टर वगैरह की। सन्ध्याको भोजन वगैरह करके रातको ८ बजे हम सर् सेतलवडके डेरे पर जाते और उपस्थित प्रमाणोंके पक्ष-विपक्षमें अगले दिनके लिये प्रश्नावलि आदि तैयार करते । इस तरह रोज रातके बारह बजते । सर् सेतलवड बराबर सब प्रमाणोंको सुनते, उनके अर्थ वगैरह पूछते और फिर अपने लिये नोटस् आदि तैयार करते। उतनी वृद्ध उम्रमें भी, उस प्रकार उनका वैसा परिश्रम देख कर मुझे बड़ा आश्चर्य होता था। भारतवर्षके एक लब्धप्रतिष्ठ और बहुत बडे बेरिस्टरके साथ बैठ कर इस प्रकार काम करनेका, अपने जीवन में अकल्पित प्रसंग मिलनेसे मुझे तो एक प्रकारका कौतूहलसा होता था और कोर्टमें सुनवाईके समय बेरिष्टरों का परस्पर वाग्युद्ध होता देख मनमें कुछ आनन्दसा आता था।
सर सेतलवडने जब आनेकी अनिच्छा प्रदर्शित की तो मेरी और सिंघीजीकी इच्छा हुई कि हमें अब श्रीमुंशीजीको बुलाना चाहिये। उनके आनेसे केसके कामकी गति बढ़ेगी और उसका जल्दी निकाल होगा। सिवाय ये स्वयं संस्कृत भाषा आदि अच्छी जानते हैं और ऐतिहासिक संशोधनका भी इनको उत्कृष्ट ज्ञान है इसलिये इनकी उपस्थितिसे विषयका गोलमालपन भी बहुतसा मिट जायगा और क्लियर आर्युमेंटका रास्ता साफ हो जायगा । पर, आणन्दजी कल्याणजीके प्रमुख प्रतिनिधि स्व० सेठ साराभाई डाह्याभाईका- जिनका सम्बन्ध सर् सेतलवडके साथ और और कारणोंसे भी बहुत घनिष्ठ था-आग्रह था कि जब तक श्रीमोतीलाल सेतलवड उपलब्ध हों तब तक अन्य किसीको नहीं बुलाना चाहिये । पर सिंधीजीकी आग्रह पूर्ण इच्छा रही कि यदि श्रीमंशीजी मिल जाय तो पहले उन्हींको निश्चित करना ठीक होगा और इसके लिये मुझसे उन्होंने अनुरोध किया कि मैं खुद बंबई जाऊं और श्रीमुंशीजीको उदयपुर ले आऊं। तदनुसार, आणन्दजी कल्याणजीके मैनेजरको साथ लेकर मैं बंबई भाया और सर सेतलवडकी ऑफिसमें बैठ कर उनसे परामर्श किया। उनकी इच्छा हुई कि पहले श्रीमोतीलालसे पूछ लिया जाय, क्यों कि उनसे इसबारेमें पहले कुछ बात चीत हो चुकी है। यदि वे न आ सकें तो फिर श्रीमुंशीजीको पूछना चाहिये । उन्होंने उसी समय श्रीमोतीलालको टेलीफोन किया और उनसे उदयपुर जानेके विषयमें बात चीत की। श्रीमोतीलालने जाना स्वीकार कर लिया। उस रातको सर चिमनलालके मकान पर हम लोगोंकी मीटींग हुई और श्रीमोतीलालको उन्होंने केसका सारा हाल समझाया और कहा की 'मुनिजी इस विषयमें बहुत “एक्सपर्ट" हैं सो तुमको सब बातोंमें इनसे बहुत कुछ सहायता मिलती रहेगी' इत्यादि । उसी दिन मुझे बंबई में खबर मिली कि-दिगम्बर पार्टीने श्रीमुंशीजीको उदयपुर लाना निश्चित कर लिया है ! अतः इनसे मिलना भी अब निरर्थक था ।
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