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वर्ष]
श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य मरण [४३ सिंधीजी आज कल इस नये मकानकी फेरबदली में व्यस्त हैं। पर मुझे शान्तिनिकेतनको आखिरी सलाम किये बाद उनसे मिलना जरूरी था और एक खास विशेष बात उनको प्रत्यक्षमें कहने लायक थी, इससे मैंने पत्र लिख कर समयकी सुविधाके विषयमें पूछा और नये स्थानका पता आदि मंगवाया। उत्तरमें उन्होंने लिखा कि
"आपके आनेके लिये हमारा समय सदा ही अनुकूल है। वहांकी व्यवस्था करके आप यहां आ जाँय । स्थानकी संकीर्णता अब तक जरूर है। परन्तु दो चार दिन किसी सुरत चला लिया जायगा। यहांका पोस्टल एड्रेस ऊपर लिखा है। टेलीग्राफिक एड्रेस वही Dalbahadur है । टेलीफोन नं. “पार्क ८६” है। आपके आनेकी सूचना मिलने पर मोटर हवड़ा स्टेशन पर भेज देंगे। किसी कारण मोटर न पहुंच सका या आप सूचना न दे सकें, तो हवड़ा स्टेशन पर ९ या १० नम्बर BUS में बैठ कर बालीगंजका टिकट लेनेसे वगैर बदली किये वही BUS आपको इस मकानके दरवाजे पर उतार देगा । और यहां सब कुशल हैं, आपका कुशल लिखियेगा।"
मेरा कलकत्ता जाना मैं जब कलकत्ते गया तो देखा कि सचमुच ही मकानकी संकीर्णता है। मकानमें चारों ओर अभी काम चल रहा है और कोई चीज ठीकसे जमाई नहीं गई है । तो भी मेरे ठहरनेके लिये एक थोडीसी जगह ठीक कर रखी थी। सारा दिन तो प्रायः सिंधीजीके कमरे ही में रहना होता था और हम आपसमें अपनी तरह तरहकी बातें बीतें किया करते थे। पहले तो उहोंने वह सारी बाडी जो करीब कितने ही एकर जितनी जमीन घेरे हुई थी और जिसकी किंमत उस समय भी ५-७ लाख रूपयेकी होती थी, घूम फिर कर बताई। फिर उसमें किस जगह क्या क्या बनवानेका इरादा है उसका प्लान दिखाया। फिर उन मकानोंके वे विस्तृत प्लान भी यथावकाश खोल खोल कर दिखाते रहे जो उन्होंने बर्षोंसे सोच सोच कर बनवाये थे। उन्हींमें उस मकानका प्लान भी शामिल था जिसमें उन्होंने अपने जीवनमें संग्रह की हुई वे सारी पुरानी चीजें म्युजियमके रूपमें स्थापित करनेका उनका ध्येय था। मकान सब भारतीय स्थापत्यके नमूनेके रूपमें बनवानेका संकल्प था ।
फिर एक दिन बोले- 'हमारी इच्छा तो यह है कि आप भी यहीं आ कर रहें और यहीं बैठ कर 'सिंघी जैन ग्रन्थ माला' का कार्य किया करें। हम आपके लिये भी अलग स्वतंत्र छोटासा मकान बना देंगे जिसमें आप, और जब पण्डितजी आवें तब वे भी, अपनी एकान्त साधना किया करें और हमारी जब इच्छा हो तब हम भी आ कर आपके पास बैठ जाया करें। फिर उठ कर वह मकान कहां पर, किस ढंगसे बनाया जाय, इसका भी दिग्दर्शन करानेके लिये, उस विशाल बाडीका वह हिस्सा मुझे प्रत्यक्ष बतलाया। . खैर, इस प्रकारकी अनेक बातें हमारी रोज होती ही रहती थीं, पर इस वार एक विशेष बात करनेका भी प्रसंग मुझे प्राप्त हुआ था, जो सिंघीजीके कुटुम्बमें सामाजिक दिसे सुधारवादकी भावनाका अंकुरोद्गम करनेवाला बना । इस प्रसङ्गने मुझे सिंघीजीके कुटुम्बमें और भी विशेष निकटताका स्थान प्राप्त कराया।
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