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५८] भारतीय विद्या
अनुपूर्ति [ तृतीय सुरुचिके मुताबिक नदीके कोठेको एक अच्छा आकर्षक आकार दे कर उसे बहुत ही स्वच्छ और सुन्दर बना दिया है । दरवाजेके सामने ही एक नौका लगी रहती है जिसमें बैठ कर उस पार आना जाना होता रहता है। सिंघीजीने अपने मकान में बीजली
और पानीके नलका भी स्वतंत्र प्रबन्ध कर लिया और इस तरह संपूर्ण आधुनिक आव. श्यकताके अनुकूल उस कोठीको सजा लिया। पास ही में एक और अच्छा नया मकान भी बिल्कुल आधुनिक ढंगके आकारका, बनाना प्रारंभ कर दिया। मैं जब मकान पर पहुंचा तो वे नदीके किनारे खडे खडे उस मकानके कामको देख रहे थे और काम करनेवालोंको कुछ सूचना दे रहे थे। - इस बार बहुत दिन बाद हम दोनोंका मिलना हुआ इससे एक दूसरेके प्रति मनमें बडा उत्सुक भाव जग रहा था । पर मैंने देखा कि सिंघीजीका शरीर बहुत कुछ दुर्बल हो गया है और उनके खान पानकी मात्रा भी बहुत ही घट गई है। रातको नींद ठीक नहीं आती है और मनमें सदा ग्लानिसी बनी रहती है । परिवारके साथ बोलने चालनेमें भी वैसी कोई प्रसन्नता नहीं दिखाई दी । बोले- 'मेरी तबियत इन दिनों कुछ नरमसी रहती है। कोई कार्य करनेकी इच्छा नहीं होती और मन भी प्रसन्न नहीं रहता है। इसीसे आपको पत्र वगैरह लिखने में उत्साह नहीं आता और पिछले दो तीन पत्रोंका ठीक उत्तर नहीं दिया गया। पण्डितजीके भी कई दिन हुए दो-एक पत्र आये पडे हैं, परन्तु उनका भी जवाब अभी तक नहीं दे पाया' इत्यादि।
अजीमगंजमें किया गया ग्रन्थमालाका भावी निर्णय रे पन्दरह दिन मैं उस समय सिंघीजीके साथ अजीमगंजमें रहा । वर्षाऋतु अपने
पूरे जोशमें थी और खूब बारीस हो रही थी। नदीका पानी काफी चढा हुआ था और वह मानों सिंघीजीके द्वारकी सीढियोंको आलिंगन करनेकी उत्सुकता बता रहा था। सिंधीजीके बैठने के कमरेमेंसे पश्चिमकी और कोई डेढ - दो-मील तकका नदीका स्थिर परन्तु समुन्नत एवं विशाल जलप्रवाह तथा उसके दोनों किनारोंपर सटी हुई सघन वृक्षघटा और झाडीका अत्यन्त मनोरम दृश्य, एक प्रकारका बहुत ही भव्य और रम्य चित्रसा लगता था और आँखोंको अनिमेषभावसे देखनेको आकृष्ट करता था। मेरे प्रकृतिप्रिय चित्तको यह दृश्य बडा सुहावना मालूम देता था और मैं घंटों खडा खडा उसकी ओर देखते हुए तृप्त ही नहीं होता था। रातको भी मैं जग जग कर मकानकी खुली छतमें जा कर खडा हो जाता था और घंटों उस एकान्त नीरव रात्रिकी अनन्य सुषमाका संवेदन कर आल्हादित होता था। दिनमें कभी सिंघीजीके साथमें और कभी श्रीमान् राजेन्द्रसिंहजी आदिके साथमें, नावमें बैठ कर आसपासके स्थानोंको देख आया करते थे। एक सन्ध्याको, अजीमगंजसे दो-एक मीलके फासले पर राणी भवानीका बनाया हुआ जो ऐतिहासिक मन्दिर है, उसको बतानेके लिये खास तौरसे सिंघीजी मुझे ले गये। उन्होंने वहांका सब इतिहास बतलाया और उस मन्दिरकी कारीगिरी आदिका परिचय कराया। सिंघीजीको इतिहास और स्थापत्य दोनों विषयोंका बडा शौक था और उस विषयकी चर्चा में वे जब तल्लीन हो जाते तब घंटों बातें करते नहीं थकते। मुर्शिदाबादके प्राचीन इतिहासकी तथा वहांके नवाबों एवं अन्यान्य प्रसिद्ध व्यक्तियों के विषयकी उनकी जानकारी खूब गहरी थी। प्रसङ्गोपात्त इस जानकारीका
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