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श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [५७ - श्रीयुक्त मुंशीजीसे मेरा सादर प्रणाम कहियेगा । अपनी बहुमुखी कार्यावलीमें भी उन्होंने मेरेको याद किया इसलिये मुझ पर उनका स्नेह है यह प्रत्यक्ष है। वे पिछली दफे जब कलकत्ते पधारे थे तब कई दफे उनसे मिलना हुआ था। एक दफे मेरे यहां भोजनकी भी कृपा की थी। बम्बई जानेका दिलमें लगा हुआ है, मगर लड़ाईके जमाने में जाना बन पडे ऐसी आशा नहीं।
अजीमगंज जाने पर पू० माजीको आपका प्रणाम जरूर कहेंगे। उनके सारे शरीरमें दर्द दिन-पर-दिन बढ़ता ही जाता है। अब तो हिलने - डोलनेकी भी शक्ति नहीं रही। कोई इलाज काम नहीं देता। अशाता वेदनीयका पूर्ण उदय है। उनको तो इस पर भी संतोष है कि मेरा बान्धा हुआ निकाचित कर्म इसी भवमें बहुतसा इस रूपमें क्षय हो रहा है। - हमारी तबियत कभी ठीक, कभी बे-ठीक ऐसी ही चल रही है। आप अपने खास्थ्यका संभाल रखें । कृपया पत्रोत्तर अजीमगंज दें। आपका स्नेही
बहादुरसिंह। मेरा सिंघीजीसे अजीमगंज मिलने जाना धीजीका यह पत्र मिले बाद मैं तुरन्त ही उन्हें मिलनेके लिये जानेको उत्सुक पहुआ पर कुछ कारण वश जा न सका । आखिरमें जुलाई (१९४२) के तीसरे सप्ताहमें मैं बंबईसे अजीमगंज जानेको रवाना हुआ। रास्तेमें कुछ ३ -४ रोज बनारस, हिंदु युनिवर्सिटीमें पंडितजीसे मिलनेको उतर गया। वहां पर पण्डितजीसे भी, ग्रन्थमालाके भविष्यके प्रबन्धके विषयमें, यथेष्ट विचार-विनिमय किया और फिर वहांसे (ता. २३ जुलाईको) अजीमगंज पहुंचा।
अजीमगंज सिंघीजीका मूल निवास स्थान है । बंगालमें बसने वाले जैनियोंका वह एक छोटासा केन्द्रस्थान है । मुर्शिदाबादके नवाबोंके जमानेसे अनेक जैन कुटुम्ब, राजपूतानासे वहां जा कर, बसे हुए हैं और वहांके जगप्रख्यात जगत्सेठ तथा अन्यान्य कई धनाढ्य जैन कुटुम्ब, कोई दो-ढाई सौ वर्षोंसे सारे हिदुस्थानमें, अच्छे प्रसिद्ध
और प्रतिष्ठित समझे जाते हैं । सिंघीजीका खानदान भी उन्हीं कुटुम्बोंमेंसे एक है। विद्यमान जगत्सेठकी माता और सिंघीजीका माता दोनों सगी बहने थीं। सिंधीजीका जन्म वहीं हुआ और बचपन भी वहीं बीता । पिछली लडाईके समयमें उनका सारा कुटुम्ब कलकत्ते आ कर बसने लग गया। इस लडाईके समय, जब कलकत्ते में जापानके माक्रमणकी आशंका खडी हुई, तो वे अपने सारे कुटुम्बको ले कर फिर अजीमगंज रहने चले गये और जब तक लडाईका आतंक दूर न हो जाय तब तक वहीं-स्थायी रहनेका निश्चय किया । मैं जब इस वार उनसे मिलने गया तो सारा कुटुम्ब वहीं था इसलिये मुझे भी वहीं जाना पड़ा।
अजीमगंजमें, भागीरथीके बिल्कुल किनारे उनकी सुन्दर कोठी बनी हुई है । ठीक दरवाजेके सामने ही भव्य नदी बह रही है । कोठीमेंसे देखने पर, नदीके उस पारका बड़ा ही सुन्दर श्य, दिन-रात आँखोंको आनन्दित करता रहता है। उन्होंने अपनी
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