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वर्ष 1
श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [ ६१
आपके लिये एक सुयोग्य लेखक-वाचकका प्रबन्ध कर देना यह तो मेरे लिये एक सौभाग्यका विषय है । यह तो सामान्य सेवा है जो मैं सहर्ष स्वीकार करता हूं। इसके अतिरिक्त सेवाकी भी समय समय पर जरूरत पडे तो हम हाजिर हैं । खर्चका कोई अन्दाजा आपने नहीं लिखा था । मुनिजीसे पूछने पर मालुम हुआ कि करीब ७५) मासिक हो सकता है । हमने वार्षिक १००० भेजनेका स्थिर कर लिया है ।
सिरीझके कामका कोई बोझ आपके सिर पर नहीं लादना चाहते, परन्तु इतना खयाल तो आप अवश्य रखेंगे कि इसके प्रकाशनका वेग बढ जाय । मुनिजीकी और हमारी हयाती में जितनी ज्यादह पुस्तकें निकल जांय यही इष्ट है । इसके लिये मुनिजीके सहायकके रूप में भी एक और आदमीकी नियुक्ति के लिये १७५ - २००) माहवारका खर्च मंजुर किया है ।
इसके भविष्यके लिये भी एक योजना की बात मुनिजी के साथ हुई है । आप इनसे मालुम करके इसके बारेमें भी अपना मन्तव्य जरूर लिखें । अगर यह योजना आपको ठीक न जंचे तो दूसरी कोई योजनाका ध्यान दिलावें । क्यों कि इसका भविष्य भी स्थिर कर लेना अब जरूरी है ।
मेरा स्वास्थ्य इन दिनों ठीक नहीं रहता है । है । वर्षा के दो मास ऐसे ही बीतेंगें । पीछे शायद ठीक रहता होगा, लिखियेगा ।
अरुचिके सिवाय और कोई बिमारी नहीं
ठीक हो जायगा । आपका स्वास्थ्य आपका विनीत - बहादुरसिंह
पण्डितजीके साथ आवश्यक परामर्श कर, ता. ९ ऑगष्टकी रातकी गाडीसे बनारससे रवाना हो मैं बंबई पहुंचा। भवनके अध्यक्ष श्रीमुंशीजीको सिंघीजीके साथ किये गये विचार विनिमयका सार विदित किया । मुंशीजी सुन कर अत्यन्त प्रसन्न हुए | भवनके साथ ग्रंथमालाका किस तरह संयोजन किया जाय उसका हम दोनोंने विचार किया और फिर मुंशीजीकी ओरसे सिंघीजीको एक ऑफिसियल पत्र लिखा गया (जिसकी नकल इसके साथ परिशिष्ट नं. १ में दी गई है ). मैंने भी उनको अलग स्वतंत्र पत्रसे सब बातें बहुत कुछ विस्तारके साथ लिख कर सूचित कीं और मुंशीजीके पत्रके उत्तरमें उन्हें किस प्रकारका ऑफिसियल पत्र लिखना चाहिये इसका सार लिख भेजा । तदनुसार ता. २४.९ ४२ को उन्होंने श्रीमुंशीजी को भेजनेका पत्र तैयार किया ( जो परिशिष्ट नं. २ में दिया गया है) और उसके साथ, ता. २९. ९.४२ को मुझे भी, निम्नलिखित, एक विस्तृत पत्र लिखा जिसमें ग्रन्थमाला विषयक अपने सब मनोगत भाव बडी स्पष्टता के साथ व्यक्त किये और भवनका, मेरा और ग्रन्थमालाका परस्पर सम्बन्ध कैसा हो इसकी उन्होंने अपनी कल्पना प्रकट की । ग्रन्थमालाके इस नूतन सम्बध-संयोजन की दृष्टिसे, यह पत्र मेरे लिये एक महत्व के ऐतिहासिक दस्तावेजसा है। सिंघीजी ने इस पत्र में अपने जीवनके प्रियतम उद्देश्य और ध्येयका अन्तिम भाव प्रकट दिया था । इस पत्र की संपूर्ण प्रतिलिपि इस प्रकार है
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अजीमगंज, २९.९. ४२
श्रद्धेय श्री मुनिजी
सविनय प्रणाम. आपके ता. १७. ८. ४२ और २०. ८. ४२ के लिखे दोनों पत्र मिल गये थे । श्रीमुन्शीजीका भी पत्र मिल गया था। जवाब में देरी हुई है उसका एक कारण यह है कि बनारससे श्री पण्डितजीके आनेकी प्रतीक्षा थी । अब वे ता. १७ ९ ४२ को
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