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वर्ष ]
श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [ ६९
होनेवाली उसकी उपेक्षा और दुर्व्यवस्थाको देख कर उनको कैसा दुःख होता था । जेसलमेर जानेसे और वहांके भण्डारको देख कर उसमेंसे अलभ्य - दुर्लभ्य ग्रन्थोंके प्राप्त करनेसे, मुझे तो मानन्द होना स्वाभाविक ही था; पर उनको भी इससे कितना आनन्द हुआ था इसका खयाल इस पत्रके पढनेसे अच्छी तरहसे आता है । ज्ञानके उद्धार और साहित्यके प्रकाशके लिये ऐसी तीव्र उत्सुकता और ऐसी उच्च भावना रखनेवाला अन्य कोई धनिक जैन, वर्तमान समयमें मेरे देखने सुननेमें तो नहीं आया ।
सिंधीजीका यह पत्र पा कर, फिर मैंने यथावकाश एक विस्तृत पत्र उनको लिखा जिसमें किस तरह बम्बई- अहमदाबादमें, वर्तमान राष्ट्रीय आन्दोलनके कारण मेरा मन क्षुब्ध हो रहा था और फिर किस तरह अकस्मात् जेसलमेर आ पहुंचना हुआ एवं किस तरह यहां पर कार्यको गति देनेके लिये अब तक क्या क्या प्रयत्न करना पडा - इत्यादि सब बातोंका खुलासावार वर्णन किया गया था । खेद है कि उस पत्रकी प्रतिलिपि मेरे पास नहीं है । हो ती तो उसका उद्धरण यहां पर खास करने जैसा था । उसी पत्र में उनको खर्चके लिये कुछ रूपये भेजनेकी भी सूचना की थी । इस पत्रके उत्तर में उन्होंने ता. १. २. ४३ को निम्नलिखित पत्र मुझे भेजा जिसमें खर्चके लिये रूपये भेजनेकी तथा मेरे पत्रको पढ कर उनको जो आनन्द आया उसकी सूचना थी ।
श्रद्धेय श्री मुनिजीकी सेवामें
सविनय प्रणाम. आपका कृपापत्र ता. २० १.४३ का जेसलमेरसे लिखा आया । पत्र विशेष उत्साहजनक और मनोरंजक है । इसका उत्तर तो अवसर मिलने पर लिखेंगे । वर्तमानमें तो आपने रूपया मंगवाया इसके पहुँचने में विलम्ब न हो, इस विचारसे यह छोटासा नोट लिख कर भेज रहा हूँ । सौ सौके नोट वहाँ जैसे स्थान में भुंजाने में कष्ट न हो इस विचारसे दस दसके ही भेजे हैं। भाई शंभूको १५००) आपके लिखे अनुसार भेज दिये हैं ।
पूज्य माजीकी तबीयत वैसी ही है । उनका तथा और सबका प्रणाम । यहाँ सब मजे हैं। आप अपने कुशल समाचारसे अनुगृहीत करते रहें । इस दफे आपको अपना मनोवांछित कार्य तो मिल गया है। मगर उसके आवेशमें आप अपने स्वास्थ्यका ध्यान भुला न दें। उसी पर सब निर्भर है । विशेष फिर । श्रीमुंशीजी से पत्र - व्यवहार चल रहा है । सं० १९९८ माघ व० ११ आपका विनीत- बहादुरसिंह
१०० - १०० के नोटकी
इस पत्र में लिखित सिंघीजीकी उस व्यावहारिक बुद्धिमत्ता और अनुभवदर्शिताका भी नोट करने जैसा है जिसमें उन्होंने रूपये भेजते समय जगह १० - १० के छोटे छोटे नोट भेजना सूचित किया है । सचमुच ही जेसलमेर में उस समय सौ रूपये का नोट भंगाना बडा तकलीफ देनेवाला काम था । सौके नोटके पीछे वहां रूपया - बारह आना बटावका देना पडता था । कभी कभी तो किसी बेचारे भोले भाले आदमीको ५ रूपये तकका बटाव देनेकी नोबत आती थी । कैसी छोटी छोटी परन्तु समय पर महत्त्वकी बन जानेवाली बातों पर सिंघीजीका कितना सूक्ष्म खयाल रहता था यह इससे सूचित होता है ।
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