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४८ ] भारतीय विद्या
अनुपूर्ति [ तृतीय
इसी बीच में श्रीमान् राजेन्द्रसिंहजी का विवाह सम्बन्ध वहां होना निश्चित हुआ और ता. १ फेब्रुआरी इ. स. १९३६, के मंगलमय मुहूर्तमें, सेठ प्रतापसिंह भाईकी सुशील पुत्री बहन सुशीलाके साथ अहमदाबादमें, योग्य समारंभपूर्वक, विवाह कार्य सानन्द संपन्न हुआ ।
सिंघीजीको हृदयकी बिमारी
जनवरी ही में सिंघीजीको हृदयकी बडी सख्त बिमारी हो गई और बडी मुस्कि लसे वे उस बिमारीमेंसे पार हुए। इसके कारण वे अपने पुत्रके विवाहकार्य में भी यत्किचित् योग न दे सके। इस बिमारीने उनकी जीवनीशक्तिको बहुत ही दुर्बल बना दिया और एक प्रकारसे वे सदाके लिये अस्वस्थसे बन गये ।
मैं अहमदाबादमें रह कर ग्रन्थमालाका काम किये जाता था । इसी बीचमें देवानन्दाभ्युदय, प्रभावकचरित्र, भानुचन्द्रचरित्र, जैन तर्कभाषा आदि ग्रन्थ मुद्रित हो कर प्रकाशित हुए और कई नये ग्रन्थोंकी प्रेस कापी आदिका काम होता रहा । दो तीन वर्ष तक सिंघीजीसे मिलना तक न हुआ । पत्रव्यवहार भी ४ - ६ महिनों में एकाध बार होता था ।
सन् १९३८ के जूनमें पण्डितजी श्री सुखलालजीको एपेन्डीसाइटका कठिन रोग हो गया जिसके लिये मेरा बम्बई आना हुआ और सर हरकिसनदास हॉस्पिटलमें उनका ऑपरेशन कराया गया । शुभोदयसे पण्डितजीको आराम हो गया। इसके समाचार सिंघीजीको जब मैंने लिखे तो वे बड़े सचिन्त हुए और पण्डितजीकी पूरी तरहसे परिचर्या आदि करानेका उन्होंने मुझसे बड़े सद्भावके साथ बहुत ही अनुरोध पूर्वक लिखा ।
मेरा
पुनः
बम्बई निवास और भारतीय विद्याभवनकी स्थापना
मैं इस तरह पण्डितजीकी परिचर्याके निमित्त, उक्त हॉस्पिटलमें था, तब एक दिन श्रीमुंशीजी - जब कि ये बम्बईकी काँग्रेस गवर्नमेंट के होम मिनिस्टर के माननीय पद पर आरूढ थे- हॉस्पिटलकी विजीटके लिये शायद चले आये। पण्डितजी के कमरे में जाने पर इन्हें मालूम हुआ, कि मैं आज कल यही बम्बई में हूं, तो इन्होंने मिलने की इच्छा प्रदर्शित की। दूसरे दिन ( जुलाई ता. १० को ) सबेरे इन्होंने अपनी मोटर भेजी और मैं इनसे मिलने गया । सेठ मुंगालालजीने दो लाख रूपये, किसी एक विशिष्ट और उच्च प्रकारके विद्याध्ययन के निमित्त, दान किये हैं और उसके लिये कोई 'पुरातत्वमन्दिर' के ढंगकी संस्था स्थापित करनेकी योजना ये सोच रहे हैं एवं उसमें मेरे संपूर्ण सहकार की ये आशा रखते हैं - इस विषयकी बातें - चीतें हुई । नासिक सेंट्रल जेल में जब हम साथ में रहते थे तब, बम्बई में एक ऐसी ही कोई संस्था स्थापित करनेके मनोरथ कभी कभी जो किया करते थे, उसकी याद भी इन्होंने दिलाई और अनपेक्षित रीतिसे अब उसके लिये ऐसा सुयोग उपस्थित हो गया है तो उसको सफल करने की कोई स्थायी योजना हमें बनानी चाहिये और एक साथ रह कर अब कुछ काम करना चाहिये - इत्यादि प्रकारके विचार इन्होंने प्रदर्शित किये।
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