________________
वर्ष ]
श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [४५ जिससे हम सीधा ही उनको लिखे सकें' इत्यादि। इस पर मैंने प्रतापसिंह भाईको कहा कि- 'पत्रमें तो मैं ऐसी कोई बात लिखना उचित नहीं समझता, पर कुछ दिन बाद कलकत्ते मुझे जाना है, सो मिलने पर प्रत्यक्षमें मैं आपका सन्देशा उनसे कह दूंगा।' वही यह खास बात थी जो इस समय मुझे सिंघीजीसे कहनी थी। अवसर पा.कर मैंने उनको उपर्युक्त सब बात कह सुनाई।
सिंधीजी इस प्रस्तावको सुन कर एकदम विस्मितसे हो गये। चि० श्रीराजेन्द्रसिंहजीके विवाहका प्रश्न तो उनके मनमें घुल ही रहा था और शायद बंगाल तथा मारवाडमेंसे कुछ जगहोंसे कन्याके बारेमें पूछ - ताछ भी चल रही थी। परन्तु गुजरातमेंसे
और वह भी अहमदाबाद जैसे जैन समाजके सबसे बडे केन्द्रस्थानमेंसे, और फिर उसमें भी सेठ प्रतापसिंह जैसेके बहुत बड़े प्रतिष्ठित घरानेकी ओरसे, कन्या देनेके बारे में प्रस्ताव हो, यह तो उनके स्वप्नमें भी कभी आने जैसी कल्पना नहीं थी। इसके पहले, एकाध अपवादके सिवा, ऐसा कोई वैवाहिक सम्बन्ध गुजरातके और बंगालके प्रतिष्ठित जैन कुटुम्बोंके बीच में कभी हुआ ही नहीं था। सिंधीजी इस विचारमें बहुत देर तक निमग्न रहे । बोले-'हम मांसे जा कर एक दफह इसका जिक करेंगे फिर आगे कुछ सोचेंगे।'
सिंघीजी अपनी मांके बहुत ही भक्त पुत्र थे। उनके जैसे मातृभक्त मैंने बहुत कम देखे। उनकी मां भी वैसी ही पुत्रवत्सल एवं बडी चतुर, धर्मनिष्ठ और कार्यनिपुण बुद्धिमती सन्नारी थी। सारे कुटुम्ब पर उनका बडा प्रभाव था। उनकी इच्छाके विरुद्ध एक पैर भी कोई खिसक नहीं सकता था। सब कुटुंबी जन उनकी अनुमति ले कर ही वैसा कोई विशिष्ट काम करते थे। एक राजराणीकी तरह उनका कुटुंब पर तेज छाया हुआ था। सिंघीजी जैसे सर्व कर्ताधर्ता भी मांको सूचित किये विना किसी महत्त्वके कामको नहीं करते थे। छोटीसे छोटी बात भी वे मांके आगे जा कर कहते थे और जिसमें मांकी सम्मतिकी अपेक्षा हो उसे जाननेकी इच्छा व्यक्त करते थे। उन्होंने यथावसर मांके पास जा कर यह बात की । मां भी इस अकल्पित प्रस्तावको सुन कर विस्मयमें गर्क हो गई । बोली- 'गंभीर प्रस्ताव है, बहुत गहराईके साथ, सभी तरहसे इसका विचार करना चाहिये ।' दो-तीन दिन तक उन मां बेटेका इस पर विचार होता रहा । कुटुंबके बहुत निकटके और भी बहन - बहनोई आदि जो स्वजन थे उनसे भी कितनीक चर्चा की गई। कौटुंबिक प्रश्न था और बहुत नाजूक प्रश्न था । समाजके साथ भी इसका घनिष्ठ सम्बन्ध था। समाजमें ऐसा विवाहसम्बन्ध रूढ नहीं था। कुछ भी अनुचित न होने पर भी, रूढिप्रिय समाजके अगुआ इसका विरोध कर सकते हैं और समाजमें किसी प्रकारका बखेडा खडा कर सकते हैं। ऐसे शंकास्पद बखेडेके काममें पडना ठीक है या नहीं, एक तो यह प्रश्न उनके सामने था। दूसरा प्रश्न था गुजरातके और बंगालके रीतरीवाजों में कुछ अन्तर होनेका । बंगालके खानदान कुटुंबोंमें स्त्रियोंके लिये पडदेका बडा कडा रीवाज अभीतक प्रायः वैसा ही चला आ रहा है । पर गुजरातमें पडदेकी अब किसीको कल्पना भी नहीं है। गुजरातका स्त्रीसमाज बहुत कुछ प्रगतिशील है और गुजरातकी लडकियां मारवाड-बंगालकी अपेक्षा बहुत ही बन्धनमुक्त हैं । ऐसी परिस्थितिमें गुजरातकी कन्याका बंगालके
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org