Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ७७०-८००
- शरीर पांच प्रकार के होते हैं जैसे कि श्रदारिक शरीर, वैक्रय शरीर, आहारीक शरीर, तेजस शरीर, और कारमाण शरीर जिसमें पहिले तीन स्थूल और अन्त के दो सूक्ष्म शरीर हैं। इन पांच शरीरों से एक आहारिक शरीर लब्धिपात्र मुनियों के ही होते हैं शेष चार शरीर सर्वसाधारण जीवों के होते हैं । उसमें औवारिक और वैकय दो शरीर उत्पन्न होते हैं और इनका विनाश भी होता है । उत्पन्न होने को जन्मना और विनाश होने को मरना कहते हैं शेष तेजस और कारमाण शरिर जीव के सदैव साथ रहता है। ये दोनों शरीर जिस समय जीव से सर्वथा अलग होजाते हैं, वे शरीर भी छुटजाते हैं तब जीव की मोक्ष होती है अर्थात् मोक्ष होने से जीव अशरीर होजाता है जिसको निरंजन निराकार कहते हैं ।
तापस-जीवात्मा से शरीर अलग है तब शरीर को कष्ट होने पर जीव को सुख दुख क्यों होता है ? मुनि - जीवात्मा के साथ कर्मों का संयोग है और शरीर कर्म की प्रकृति है। जीव ने भ्रांति से शरीर को अपना कर माना है उस अपनायत के कारण शरीर के साथ जीव को भी दुखी होना पड़ता है । जैसे एक वृद्ध तपसी ने शीत ताप से बचने के लिये घास की झोंपड़ी बना रक्खी थी, एक समय तपसी जंगल में गया था पीछे से किसी ने उसकी झोपड़ी को तोड़ फोड़ कर नष्ट कर दी जब । तपसी वापिस श्राया तो कोंपड़ी नष्ट हुई देख बहुत दुःख किया यद्यपि तपसी को कुछ भी तकलीफ नहीं दी थी पर पसी ने उस मोंपड़ी को अपनी कर मानली थी अतः झोंपड़ी के नष्ट होने से तपसी को दुःख हुआ इसी प्रकार जीव ने शरीर को अपना मान लिया इसलिये उसे दुःखी होना पड़ता है ।
तापस- शरीर में जीवात्मा किस प्रकार और किस जगह पर रहता है ?
मुनि - जैसे तिलों में तेल, दूध में घृत, पुष्पों में सुगन्धी रहती है वैसे शरीर में जीवात्मा रहता है। श्रर्थात् सब शरीर में खीर नीर की माफिक मिला हुआ रहता है ।
तापस - जीवात्मा और शरीर के कब से संयोग हुआ है ? मुनि-जीव और शरीर नय संयोग नहीं होता है पर अनादि काल का संयोग है । तापस -- जब संयोग नहीं तो उसका वियोग भी नहीं होगा और वियोग नहीं तब तो जीव की मोक्ष भी नहीं होगी ।
मुनि - जीव के साथ शरीर का अनादि संयोग है फिर भी उसका वियोग हो सकता है जैसे तिलों में सेलका कब संयोग हुआ अर्थात् तिलों में तेल किसने डाला इसकी आदि नहीं है परंतु यंत्र मशीन घणि वग़ैरह के प्रयोग से तिलों से तेल का वियोग होसकता है। इसी प्रकार जीव और शरीर की आदि नहीं है पर सम्यक् ज्ञानदर्शन चरित्र रूपी यंत्र मिलने से वियोग हो सकता है ।
तापस- तब तो सब जीवों की मोक्ष हो जायगी १
मुनि-नही सब जीवों की मोक्ष नहीं होती है ।
तापस- इसका क्या कारण है ?
मुनि - मोक्ष उसकी ही होसकती है कि सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना कर सके ।
तापस - तो क्या सब जीव आराधना नहीं कर सकते हैं ?
मुनि- नहीं, कारण सत्र जीवों को ज्ञान दर्शन की श्राराधना का समय ही नहीं मिलता है। देखिये संसार में जीव चार प्रकार के हैं जैसे उदाहरण :--
मोक्ष मार्ग की आराधना का साधन ]
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