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गगानी गुन-. २५ उ. ३ श्रेणियों के भेद और परमाणु की गति
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विवेचन-किसी भी प्रकार का विशेषण लगाये बिना सामान्य श्रेणियों में अनादिअपर्यवमित भंग पाया जाता है, शेष तीन भंग नहीं पाये जाते । लोकाकाश की श्रेणियों में 'मादि-मपर्यवसित' भंग पाया जाता है, शेष नहीं । क्योंकि लोकाकाश परिमित है । अलकाकाश की श्रेणियों के विषय में चारों भंगों का सद्भाव बताया है, वह इस प्रकार घटित होता है कि-मध्यलोकवर्ती क्षुल्लक प्रत र के र.मीप आई हुई ऊर्ध्व-अधो लम्बी श्रेणियों की अपेक्षा 'सादि-सान्त' प्रथम भंग बनता है । लोकान्त से प्रारम्भ हो कर चारों ओर जाती हुई धेणियों की अपेक्षा 'सादि-अनन्त' दूसरा भंग घटित होता है । लोकान्त के निकट सभी श्रेणियों का अन्त होने से उनकी अपेक्षा 'अनादिसान्त' तीसरा भंग घटित होता है और लोक को छोड़ कर जो श्रेणियाँ हैं, उनकी अपेक्षा 'अनादि-अनन्त' चौथा भंग घटित होता है।
अलोक में तिरछी श्रेणियों का सादित्व होने पर भी सपर्यवसितपन (सान्त) न होने से प्रथम भंग नहीं बनता, शेष तीन भंग बनते हैं।
रुचक-प्रदेशों से प्रारम्भ हो कर जो पूर्व और दक्षिण लोकार्द्ध है, वह पश्चिम और उत्तर लोकार्द्ध के बराबर है। इसलिये पूर्व-पश्चिम श्रेणियाँ और दक्षिण-उत्तर श्रेणियाँ सम-संख्यक प्रदेशों वाली हैं। उनमें से कोई कृतयुग्म प्रदेशों वाली हैं और कोई द्वापरयुग्म प्रदेशों वाली हैं, किन्तु व्योज और कल्योज प्रदेशों वाली नहीं हैं । इसके लिये प्रदेशों की असद्भाव स्थापना बता कर इसी बात को स्पष्ट कर दिया है ।
अलोकाकाश की श्रेणियों के प्रदेशों में कृतयुग्मादि चारों भेद पाये जाते हैं । इसमें • वस्तु-स्वभाव ही मुख्य है।
-WORDARARAM
श्रेणियों के भेद और परमाणु की गति
५७ प्रश्न-कइ णं भंते ! सेढीओ पण्णत्ताओ ? ५७ उत्तर-गोयमा! सत्त सेढीओपण्णत्ताओ, तं जहा-१ उज्जु
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