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. भगवती सूत्र-२२५ उ. ७ स्थिति द्वार
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८१ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य देशोन दो सौ वर्ष, उत्कृष्ट देशोन दो पूर्वकोटि वर्ष तक होते हैं।
८२ प्रश्न-सुहुमसंपरायसंजया णं भंते !-पुच्छा।
८२ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उकोसेणं अंतो. मुहुत्तं । अहक्खायमंजया जहा सामाइयमंजया (२९)।
भावार्थ-८२ प्रश्न-हे भगवन् ! सूक्ष्म-संपराय संयत (बहुत) कितने काल.' तक होते हैं ?
८२ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कष्ट अन्तर्मुहूर्त तक । यथाख्यात संयतों का कथन सामायिक संयतों के समान है (२९)।
विवेचन -सामायिक चारित्र प्राप्ति के बाद तुरन्त ही उसकी मृत्यु हो जाय, उस अपेक्षा से सामायिक संयत का काल जघन्य एक समय होता है और उत्कृष्ट देशोन नौ वर्ष कम पूर्वकोटि वर्ष होता है । यह काल गर्भ के समय से गिनना चाहिये।
___परिहारविशुद्धिक संयत का जघन्य काल एक समय मरण की अपेक्षा है और उत्कृष्ट देशोन उनतीस वर्ष कम पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण होता है, क्योंकि पूर्वकोटि वर्ष की आयु वाले किसी मनुष्य ने देशोन नौ वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की और बीस वर्ष की दीक्षा-पर्याय होने पर वह परिहारविशुद्धिक चारित्र को स्वीकार कर सकता है । यद्यपि परिहारविशुद्धिक चारित्र का काल परिमाण अठारह मास का है, तथापि उन्हीं अविच्छिन्न परिणामों से वह उसे जीवनपर्यन्त पाले, तो देशोन उनतीस वर्ष कम पूर्वकोटि वर्ष पर्यन्त रहता है। ... यथाख्यात संयत का काल परिमाण उपशम अवस्था में मरण की अपेक्षा जघन्य एक समय और स्नातक अवस्था वाले यथाख्यात संयंत की अपेक्षा देशोन पूर्वकोटि वर्ष है। .... उत्सर्पिणी काल में प्रथम तीर्थंकर के तीर्थ तक छेदोपस्थापनीय चारित्र होता है और उनका तीर्थ (शासन) ढाई सौ वर्ष चलता है । इसलिये छेदोपस्थापनीय संयतों का काल जघन्य ढ़ाई सौ वर्ष होता है । अवसर्पिणी काल में प्रथम तीर्थंकर के तीर्थ तक छेदोपस्थापनीय चारित्र होता है और उनका तीर्थ पचास लाख करोड़ सागरोपम तक होता है। इसलिये उत्कृष्ट इतने काल तक छेदोपस्थापनीय संयत होते हैं ।
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