Book Title: Bhagvati Sutra Part 07
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 673
________________ विषय कषायों से बंध और फल क्रोधादि के पर्यायवाची नाम (१०) कर्मादान वर्णन ८ क्रियाएँ - औदारिकादि शरीर आश्रित लगने वि. ८ ८ कर्म - प्रकृतियों में परीषहों का समवतार कर्म के अनन्त अबिभागी परिच्छेदों से जीव प्रदेश आवेष्ठित-परिवेष्ठित है कर्मों की परस्पर नियमा व भजना काल के प्रमाणादि चार भेद-प्रभेद कर्म से ही जीव और जगत नानारूप में है कर्म - प्रकृतियों पर प्रज्ञापना सूत्र का निर्देश केवली और सिद्धों का ज्ञान समान है। क्रियाएँ - लोहारी कर्म संबंधी कर्म 'वेदावेद, वेदा बंध, बंधावेद, पर प्रज्ञापना का निर्देश Jain Education International शतक उद्देशक भाग पृष्ठ ८ U ८ ११ १२ १२ १२ १३ १४ १६ १६ (श. ६ उ. भा. २ पृ. १०५९-६० पर भी है ) कायोत्सर्ग रहे मुनि का अर्श छेदन में क्रिया १६ कोष्ठादि पुड़ों को इधर-उधर ले जाते हुए गंध के पुद्गलों का बहना १६ १७ क्रियाएँ तालफल - मूलादि को हिलाने आदि में १७ क्रियाएँ शरीर इंद्रियाँ व योगबंध से क्रियाएँ प्राणातिपातादि पाँच, जीवों को स्पर्शी हुई, अवगाहन की हुई, उसी समय उसी क्षेत्र उसी प्रदेश में लगने विषयक कार्तिक सेठ ( शकेन्द्र) का पूर्वभव केवलियों के अंतिम निर्जरा के पुद्गलों को छद्मस्थ जानता है और आहार रूप से ग्रहण करता है १८ १७ १८ ५ ३ ६ ३. १४०७- ८ ३ १० १० ११ १. ४. ५. જ ५ ८ १० १ ३ ६. ܕ १ ४ २ ३ ३ ३ ૪ For Personal & Private Use Only ५ ४. २०५६- ५ : २२६२- ५ २३६२- २५०६- ५. ५. ५ ५ १३८६- ९१" १५ १४५१-- ६२ ५ ५ .६ १५५२- ५६ १५५६-- ६५ १६१५- २३. १९८३ ८५ २०४६- ५० ६० ६३ ६७ ८ २५२६-. २५२८ २६२४ २६६५ २८ २५७० ७१ २५९५ - २६०० २६०१ ३ ६ २६८० ३१ २७ ७४ ८१ www.jainelibrary.org

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