Book Title: Bhagvati Sutra Part 07
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 676
________________ विषय चौबीस दण्डक के जीव कहाँ आयुष्य बाँधते, भोगते व महावेदना वेदते हैं चरमाचरम पर प्रज्ञापना का निर्देश (१३) चंद्र राशि तथा सूर्य को आदित्य कहने के कारण चमरेंद्र का चमरचंचा आवास चौबीस दण्डक के जीवों में सत्कारादि योग्यता चौबीस दण्डक में ईष्ट-अनिष्ट शब्दादि का अनुभव चौबीस दण्डक के जीवों का आहार चैतन्य कृत कर्म वर्णन चलना के भेद-प्रभेद चोबीस दण्डकों में जीवों की उत्पत्ति, गति उ. ६ भव्य, उ. १० अभव्य, उ. ११ सम्यग्दृष्टि, उ. १२ में मिथ्यादृष्टि (छ) छठे आरे का वर्णन छद्मस्थ दस स्थानों को सर्वथा नहीं जानते छद्मस्थ के समुद्घात पर प्रज्ञापना का निर्देश छद्मस्थ साधु अपने कर्म - लेश्या को नहीं जानते परं तद्युक्त जीव को जानते हैं । कर्म योग्य लेश्या पुद्गल प्रकाशित होते हैं (ज) जीव और पुद्गलों के संबंध पर नाव का दृष्टांत जिस लेश्या में जीव काल करता है, उसी में उत्पन्न होता है जीवों के कर्मोपचय मनादि प्रयोगों से और वस्त्र के पुद्गलोपचय दोनों प्रकार से जीवों के सुख या दुःखादि को कोई निकाल कर नहीं बता सकता Jain Education International शतक उद्देशक भाग ७ ६ ८ ५ १२ १३ १४ १४ १४ १६ १७ १३ १४ ७ ६ ८ २ १ ३ ३ ६ ४ ६ २५ ८-१२ ७ ३ ३ ५ ६ ६ २ ३ १० ९ ६ ४ १० ५ ५ For Personal & Private Use Only ३ ३ ५ ५ ५ ५ ५ २६१८-२ ५ १ २ पृष्ठ २ ११४९ -- ५२ १३७१-- ७२ २०६५-- ६६ २२२७- ३१ २२६७-२३०२ २३१६-- १८ २३२०-- २१ २५२४- २६ ३५४० ४८ ११५८ ६७ १२९६ ९७ २२७२-- ७४ २३५४-- ५६ २८० - ८२ ६७९ - ८१ ६४६ ५६ २ १०६६-६६ www.jainelibrary.org

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