Book Title: Bhagvati Sutra Part 07
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 688
________________ (२५) विषय शतक उद्देशक भाग पृष्ठ वरण नागनत्तुआ व उसके बालमित्र का वर्णन ७ ९ ३ १२०३-- १३ बनस्पति, संख्यात, असंख्यात व अनंतजीवी, भेद-प्रभेद ८ ३ ३ १३६७- ६९ व्यवहार के ५ भेद ८ ८ ३ १४३२-- ३४ वृक्ष मूलादि को हिलाने से वायुकाय को लगने वाली क्रियाएँ ९ ३४ ४ १७७८-- ८१ वीचि (कषाय) अवीचिमान साधु को रूप निरीक्षण ___ करते लगती हुई क्रिया १० २ ४ १७९१- ९३ वेदना वर्णन पर प्रज्ञापना का निर्देश (श. १९ उ. ५ भाग ६ में भी) १० २ ४ १७९३- ९७ विग्रहगति एकेंद्रिय में ४ तथा शेष में १, २, ३ समयों की १४ १ ५ २२७८-- ८. वीचि-अवीचि द्रव्यों का आहार चौबीस दण्डक पर १४ ६ ५ २३२०-- २१ वर्षा जानने के लिए हाथ फैलाने वाले को क्रियाएँ १६ ८ ५ २५८३- ८४ व्यन्तर देव के समाहारादि । - १९ १०६ २८२६ : वनस्पति वर्ग वर्णन २१, २२ २३ तीन शतकों में २१ ८. ६ २६४२- ७४ व्युत्सर्ग के भेद-प्रभेद २५ ७ ७ ३५३७-- ४० ९ १ १ ३३९-- ४१ २ ५९५-- ९६ श्रमण-निर्ग्रथों का लाघव । क्रोधादि का अभाव प्रशस्त है तथा कांक्षा प्रदोष क्षीण होने से मोक्ष जाते हैं १ शकेंद्र के विमानों से ईशानेंद्र के विमान कुछ उँचे हैं ३ शक्र-ईशानेन्द्र का मिलन, आलाप-संलाप तथा विवाद निर्णय ___३ श्रमणोपासक को सामायिक में भी सांपरायिकी क्रिया ७ श्रावक वनस्पति की हिंसा का त्यागी हो, तो पृथ्वीकाय खोदते हुई वनस्पति की हिंसा से व्रत भंग नहीं ७ श्रावक श्रमण-माहनों को दान देता हुआ समाधि प्राप्त करता है यावत् सिद्ध होता है ७ १ २ ५९६-६०१ २ १०८२-- ८३ १ १ ३ १०८३- ८५ । ३ १०८५--- ८७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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