Book Title: Bhagvati Sutra Part 07
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 687
________________ (२४) विषय शतक उद्देशक भाग पृष्ठ २ ७८५--८६ २ १०१८--२३ २ १०५६--५९ ३ १०८१-८२ ३ ११३४-१७ ४ (टीका में) लवण समुद्र के विष्कंभादि पर जीवाभिगम का निर्देश ५ २ लोकांतिक देवों का वर्णन ६ . ५ लवणादि समुद्र व द्वीपों का वर्णन, संख्या आदि६ ८ लोक संस्थान ७ १ लेश्या वाले नैरयिकादि के कर्मों की न्यूनाधिकता ७ ३ लोकालोकस्वरूप के अन्तर्गत निगोद छत्तीसी है ११ १. लोक, अधोलोक आदि का मध्य भाग लोक का सम, संक्षिप्त व वक्रभाव कहाँ है ? १३ ४ लोक संस्थान व अल्पाबहुत्व लेश्या (भाव) ही देवों में पलटती है, द्रव्य नहीं १४ लवसप्तम सर्वार्थसिद्ध के देव कहे जाते हैं १४ ७ लोक महत्ता तथा चरमान्तों में जीवाजीवादि १६ ८ लेश्या वर्णन पर प्रज्ञापना का निर्देश १९ २ ५ २२२३-२४ ५ २२२४-२५ ५ २२७६ ५ २३३८-४. ५ २५७३-८२ २७७०-७१ ६ व्यन्तर देवों के आवासों का वर्णन विग्रह गति-अविग्रह गति का वर्णन १ वीर्य (लब्धि व करण) सहित या रहित जीवादि वर्णन १ वायुकाय का उच्छ्वास । कायस्थान . २ वाय-विकूर्वणा तथा बादल के रूप ३ वायु के दिशा, विदिशा द्वीप समुद्रादि में चलने के प्रकार ५ वृद्धि हानि अवस्थित तथा सोपचयादि का जीवादि ___ आश्रित वर्णन ५ वेदना व निर्जरा की चौभंगी उदाहरण सहित ६ वनस्पतिकाय किस ऋतु में कम व अधिक आहार लेती है तथा मूल से बीज पर्यन्त भेद ७ वेदना व निर्जरा का वर्णन ७ ७ ८ १ ४ २ १ १ १ २ २ २९२-६६ ३२६-२९ ३८२--८५ ६७३-७९ ७७४-८१ ८ १ २ २ ९०२-१३ ९३२-३८ ३ ३ ३ ११३०-३४ ३ ११३७-४३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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