Book Title: Bhagvati Sutra Part 07
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 685
________________ (२२) विषय शतक उद्देशक भाग पृष्ठ १८ । ४ ६ २६९५- ९६ बादर अग्निकाय के जीव जघन्य उत्कृष्ट आयु वाले समान हैं। कोई सूक्ष्म के समान मानते हैं बेइंद्रियादि ४-५ जीव मिल कर साधारण शरीर नहीं बाँधते हैं तदाश्रित लेश्यादि बोल बंध-प्रयोगादि तीन व उनका विस्तृत वर्णन २०१६ २८२८- ३० २० ७ ६ २८९६-२९०० भाषा वर्णन पर प्रज्ञापना का निर्देश २ ६ १. ४९९-५०० भिक्षु-प्रतिमा पर दशाश्रुतस्कंध सूत्र का निर्देश १० २ ४ १७९७-~- ६६ भाषा (व्यवहार भाषा) के १२ भेद १० ३ ४ १८०६-- ६ भव्यद्रव्यादि ५ देवों का वर्णन १२ ४ ४ २०८६-२१०५ भावदेव भवनपति आदि की अल्पाबहुत्व पर __ जीवाभिगम का निर्देश १२ ४ २१०२-२१०५ भक्त-प्रत्याख्यानी अनगार का आहार १४ ७ ५ २३३६- ३८ भाव ६ प्रकार के (श. २५ उ. ५ भाग ७ में भी) भव्य-द्रव्य नरकादि चौबीस दडंकों का वर्णन, स्थिति १८९ ६ २७४५-- ५० (म) मोहनीय कर्म के उदय से उपस्थान व अपक्रमणादि १ ४ १ २०७-- १० मृतादि अनगार का वर्णन २ . १ १ ३८५-६० महा तपोतीर-प्रभव नामक गरम पानी का झरना २. ५ १ ४९५- ९८ महाशुक्र के दो देवों का शिष्यों की सिद्धि विषयक प्रश्न ५ ४ २ ८.९-- ८१४ महावेदना व महानिर्जरादि पर वस्त्र का दृष्टान्त प्रशस्त निर्जरा ही श्रेष्ठ है ६ १ २ ६३२- ३४ मारणांतिक समुद्घात एक या दो बार कर के उत्पन्न होने व आहार लेने का वर्णन ६ ६ २ १०२५-- ३० महाशिलाकंटक संग्राम का वर्णन ७ ९ ३ ११९०- ९९ मरण-आविचि आदि के ५ भेद-प्रभेद १३ ७ ५ २२५४.- ६२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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