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विषय
शतक उद्देशक भाग
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। ४ ६ २६९५-
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बादर अग्निकाय के जीव जघन्य उत्कृष्ट आयु
वाले समान हैं। कोई सूक्ष्म के समान मानते हैं बेइंद्रियादि ४-५ जीव मिल कर साधारण शरीर
नहीं बाँधते हैं तदाश्रित लेश्यादि बोल बंध-प्रयोगादि तीन व उनका विस्तृत वर्णन
२०१६ २८२८- ३० २० ७ ६ २८९६-२९००
भाषा वर्णन पर प्रज्ञापना का निर्देश
२ ६ १. ४९९-५०० भिक्षु-प्रतिमा पर दशाश्रुतस्कंध सूत्र का निर्देश १० २ ४ १७९७-~- ६६ भाषा (व्यवहार भाषा) के १२ भेद १० ३ ४ १८०६-- ६ भव्यद्रव्यादि ५ देवों का वर्णन
१२ ४ ४ २०८६-२१०५ भावदेव भवनपति आदि की अल्पाबहुत्व पर __ जीवाभिगम का निर्देश
१२ ४ २१०२-२१०५ भक्त-प्रत्याख्यानी अनगार का आहार १४ ७ ५ २३३६- ३८ भाव ६ प्रकार के (श. २५ उ. ५ भाग ७ में भी) भव्य-द्रव्य नरकादि चौबीस दडंकों का वर्णन, स्थिति १८९ ६ २७४५-- ५०
(म) मोहनीय कर्म के उदय से उपस्थान व अपक्रमणादि १ ४ १ २०७-- १० मृतादि अनगार का वर्णन
२ . १ १ ३८५-६० महा तपोतीर-प्रभव नामक गरम पानी का झरना २. ५ १ ४९५- ९८ महाशुक्र के दो देवों का शिष्यों की सिद्धि विषयक प्रश्न ५ ४ २ ८.९-- ८१४ महावेदना व महानिर्जरादि पर वस्त्र का दृष्टान्त प्रशस्त निर्जरा ही श्रेष्ठ है
६ १ २ ६३२- ३४ मारणांतिक समुद्घात एक या दो बार कर के उत्पन्न होने व आहार लेने का वर्णन
६ ६ २ १०२५-- ३० महाशिलाकंटक संग्राम का वर्णन
७ ९ ३ ११९०- ९९ मरण-आविचि आदि के ५ भेद-प्रभेद
१३ ७ ५ २२५४.- ६२
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