________________
(२१)
.
विषय
शतक उद्देशक भाग पृष्ठ पुद्गलों (परमाणु आदि) के ज्ञानाज्ञान व देखना न देखना
१८ ८ ६ २७४२-- ४५ परमाणु पुद्गलादि की वायुकाय के साथ स्पर्शना १८ १०६ २७५१-- ५४ पृथ्वी आदि के ४-५ जीव साधारण शरीर नहीं __बांधते । उनमें लेश्यादि के १५ बोल १६ ३ ६ २७७१-- पृथ्वी आदि में कौन सूक्ष्म व कौन बादर है ? १९ ३ ६ २७८५-- पृथ्वी आदि के शरीर की सूक्ष्मता पर चक्रवर्ती की दासी का दृष्टान्त
१९ ३ ६ २७९०पृथ्वी आदि के स्पर्श का दुःख । वृद्ध का दृष्टान्त १९ ३ ६ २७९१-- ९३ प्राणातिपातादि आत्मा से भिन्न परिणत नहीं होते २० ३ ६ २८४१-- ४५ परमाणु द्रव्यादि चार का स्वरूप
२० ५ ६ २८८६--८८ पृथ्वी, पानी, वायुकाय के जीव उत्पन्न हो कर - आहार लेते हैं (श. १७ उ. ६-११ में भी) २० ६ ६ २८८९-- ९५ पूर्वो का ज्ञान वीरशासन में १००० वर्ष तथा अन्य
शासनों में संख्यात-असंख्यातकाल रहा २० ८ ६ २९०६- ७ प्रवचन-प्रवचनी तथा कुलों में सिद्ध होने का वर्णन २० ८ ६ २९०७-- ८ परमाणु आदि का द्रव्यादि कृतयुग्मादि तथा सार्दादि का विस्तृत वर्णन
२५ ४ ७ ३२६२-३३३३ पर्यवों के भेदों पर प्रज्ञापना का निर्देश २५ ५ ७ ३३३६प्रतिसेवनादि वर्णन
७ ३४४८-३४९२ प्रायश्चित्त के दस भेद
२५ ७ ७ ३४९८-३५००
बंध-ईर्यापथिक व सांपरायिक
८ बंध-प्रयोगादि का विस्तृत वर्णन (बंध छत्तीसी) बलिंद्र की सुधर्मा सभा व बलिचंचा राजधानी १६ बंध-द्रव्य व भाव उनके भेद-प्रभेद
१८
८ । ९ ३
३ १४३५- ५१ ३ १४६९-१५३७ ५ २५८६- ८८ ६ . २६८५- ८८
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org