Book Title: Bhagvati Sutra Part 07
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 683
________________ (२०) विषय शतक उद्देशक भाग पृष्ठ प्रत्याख्यान के भेद-प्रभेद आदि ७ २ ३ ११०९-२८ पापकर्म दुःख का हेतु, निर्जरा सुख का कारण है ७ ८ ३ ११८३-८६ पाप व कल्याण के विपाक पर विष व औषधि मिक्षित पकवान का उदाहरण । कालोदायी का ७ १० ३ १२२१-२५ पुद्गल के प्रयोगादि भेद-प्रभेद ८ १ ३ १२३२-५४ पुद्गल के वर्णादि पांच परिणाम, द्रव्य प्रदेशादि ८ १० ३ १२५४--८७ पुरुष, ऋषि आदि की घात करने वाला कितने जीवों का घातक ९ ३४ ..१७७१-७६ पृथ्वी आदि पांचों का उच्छ्वास रूप से ग्रहण - होना व उससे लगने वाली क्रिया १७७७-८१ पुद्गल परिव्राजक का वर्णन १९६६-७० पुद्गलों के संयोग-वियोग के भंग १२ ४ ४ २०००-३१ पुद्गल परावर्तन अधिकार १२ ४ ४ २०३१-४५ परिचारणा । प्रज्ञापना का निर्देश १३ ३, ५ २१७४-७५ पृथ्वीकाय आदि का परस्पर अवगाहन १३ ४ ५ २२१५-२१ परमदेवावास अप्राप्त अनगार की गति । देवों में भावलेश्या ही परिवर्तित होती है २२७६-७८ पुद्गलों का एक समय रूक्ष, एक समय अरूक्ष, एक समय रूक्षारूक्ष आदि परिणमन १४ ४ ५ २३०३- ५ परमाणु पुद्गल द्रव्य से शाश्वत भाव से अशाश्वत हैं १४ ४. ५ २३०६-- ८ परमाणु का द्रव्य-क्षेत्रादि से चरमाचरम २३०६-८ परिणमन स्वरूप पर प्रज्ञापना का निर्देश २३०८-९ परिणत हुए पुद्गलों को परिणत कहना . १६ ५ ५ २५४३-५२ . परमाणु की एक समय में लोकांत से लोकांत तक गति १६ ८ ५ २५८२-८३ प्रथम-अप्रथम तथा चरमाचरम वर्णन १८ १ ६ २६४८-६४ परमाणु आदि में वर्ण, गंधादि (श. २० उ. ५ भाग ६ पृ. २८४५ में भी है) १८ ६ ६ २७१०-१३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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