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विषय
शतक उद्देशक भाग पृष्ठ नैरयिक पृथ्व्यादि पाँचों का अनिष्ट स्पर्शानुमव १३ ४ ५ २१७५-८१ नरकों की परस्पर अपेक्षाकृत लम्बाई, चौड़ाई १३ ४ ५ २१७५-- ८१ नरकावासों के पास वाले पृथ्वीकायादि महाकर्म महावेदना वाले है
१३ ४ ५ २१८१ नारकी जीव पुद्गलों व संज्ञाओं का अनिष्टादि
परिणाम अनुभव करते हैं १४ ३ ५ २३०२- ३ नरयिकों में मिथ्यात्वी की महाकर्म समकिती को अल्प
१८ ५ ६ २७०२- ३ नरक, देवलोक व सिद्धशिला के नीचे के द्रव्यों में वर्णादि २० बोल
१८ १०६ २७५२-५४ निर्वृत्ति-जीव, इंद्रिय, कर्मादि का वर्णन
६ २८१०-२१ निगोद के भेदों पर जीवाभिगम का निर्देश
७ ३३४८ निग्रंथादि पांच के भेदादि ३६ द्वार
७ ३३५१-३४३८ नरक पृथ्वी वर्णन, जीवाभिगम का निर्देश १२ ३ ४ १९९८-२०००
१
४ ३ ३ ४
२१४-- १५ ४५४-- ५६ ६६५ - ६७ ८१९-२१
२ २
परमाणु पुद्गल, स्कंध और जीव शाश्वत हैं १ पृथ्वी (नरक) के वर्णन पर जीवाभिगम का निर्देश २ प्रमत्त-अप्रमत्त संयत की स्थिति
३ प्रमाण के भेदों पर अनुयोगद्वार सूत्र का निर्देश । ५ परमाणु पुद्गलादि का एजनादि कंपन, असिधारा अवगाहन
५ परमाणु सार्द्ध, समध्य व सप्रदेशी हैं क्या ? ५ परमाणु आदि के परस्पर स्पर्शना संबंधी नौ भंग ५ परमाणु आदि की स्थिति, कंपन, अकंपन, अंतरकाल ५ पुद्गलों के द्रव्य, क्षेत्र, अवगाहन तथा भाव स्थान ५ पुद्गलों के द्रव्यादि आश्रित सप्रदेशी अप्रदेशी आदि ५ प्रत्याख्यानादि का ज्ञान व उनके द्वारा आयुष्य बंधन ६
७ ७ ७ ७ ७ ८ ४
२ २ २ २ २ २ २
८६४-६८ ८६८-- ७० ८७०-- ७६ ८७७- ८४ ८८२-- ८४ ८९३--९०२ ९९५-९९९
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