Book Title: Bhagvati Sutra Part 07
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 681
________________ विषय देव रुचकवर द्वीप तक चौतरफ पर्यटन करते हैं, आगे जाते तो हैं, पर पर्यटन नहीं करते देवों के कर्माशों का क्षय काल आदि द्वीप समुद्र वर्णन पर जीवाभिगम का निर्देश देवों के आवासों का वर्णन (ध) (१८) धान्यों का कालमान धर्मास्तिकायादि तीनों पर बैठना, सोना नहीं हो सकता, दीपक का दृष्टांत धर्माधर्मं स्थिति अपेक्षा वर्णन, धर्माधर्म पर कोई बैठ या सो सकता है क्या धर्मास्तिकाय आदि पाँचों के पर्यायवाची नाम (त) नमस्कार मंत्र, राजगृह नगर, प्रभु-देशना, गौतमस्वामी का वर्णन नैरयिक नरक में उत्पन्न होते हैं, इस पर प्रज्ञापना का निर्देश नैरयिक चार सौ पाँच सौ योजन तक खचाखच भरे रहते हैं, उनकी विकुर्वणा आदि पर जीवाभिगम का निर्देश नरक तथा देवलोकों के नीचे गृह- मेघादि वर्णन देवों के सातवीं नरक के नीचे जाना इस पाठ से भी प्रमाणित होता है नैरयिक दस प्रकार की वेदना वेदते हैं। नरकादि में लेइयादि ३९ बोल बालों के उत्पन्न होने की संख्या तथा शुभाशुभ लेश्या नरकावास किस नरक से किसके बड़े हैं, आदि Jain Education International शतक उद्देशक भाग पृष्ठ १८ १८ १९ १९ १३ ६ १७ २० १ ३ ७ १३ १३ For Personal & Private Use Only 9 9 ur 9 ७ ७ ६ ७ ७ ४ २ २ १ ८ ८ १ ४ ६ ६ ६ ६ २ ५ ५ -२२२१-२३ ६ १ २ २ २ ३ ५ २७३०- ३१ २७३१- ३५ २८०५-- ६ २८०७-- १० ५ १०३१- ३३ २६०५- ७ २८३६- ४१ १-- २० ७४४-- ४५ ८५६- ५८ १०४४ - ५० १९८४- ८६ २१३६- ५८ २१७५-८१ www.jainelibrary.org

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