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विषय
शतक उद्देशक भाग पृष्ठ (त) तुंगिया नगरी के श्रावकों का वर्णन, प्रश्नोत्तर २ ५ १ ४६८- ४९१ तथारूप के श्रमण माहन की सेवा का फल २ ५ १ ४९१-४९५ तमस्काय का स्वरूप
६ ५ २ ९९९-१०११ तथारूप के संयती-असंयती को दान देने का फल ८ ६ ३ १३९२- ९५ त्रायत्रिंशक देव वर्णन
१० ४ ४ १८०९- १९ तमस्काय । ईशानेन्द्र का तमस्करण कारण १४ २ ५ २२९३- ९५ तुल्यता के भेद-प्रभेद
१४ ७ ५ २३२९- ३६ तीर्थकर और तीर्थ का स्वरूप
२० ८. ६ २९०३- ५ तप के भेद-प्रभेद
२५ ७ ७ ३५००-३५४०
७
१
२८६- ९२
७
१
२९२- २९६
७. ४
१ २
५००-- ५०३ ८१४-- १७
देश से देश व आधे से आधा उत्पन्न होने व ___आहार लेने सम्बन्धी प्रश्नोत्तर १ देव कुछ समय तक लज्जा व जुगुप्सा के कारण ___ आहार नहीं लेते
१ देव चार प्रकार के व उनके स्थानादि वर्णन पर
प्रज्ञापना का निर्देश । कल्पविमानों के
आधार के लिए जीवाभिगम का निर्देश २ देव नोसंयती है । देवों की भाषा अर्द्धमागधी है ५ . देवलोक चार प्रकार के । श. ८ उ. ५ भाग ३
पृ. १३८७-९१ पर तथा श. २० उ. ८
भाग ६ पृ. २९०८-९ पर भी है ५ देवों की पुद्गलों को ग्रहण कर के विकुर्वणा करने
की शक्ति, भिन्न वर्णादि रूप से परिणमन ६ देवों के शुद्ध-अशुद्ध लेश्या व उपयोग रहित या
सहित जानने न जानने संबंधी १२ भांगे ६ दीपक नहीं जलता, अग्नि जलती है ८
९
२
९२७-
२९
९
२ १०६०-- ६३
१. २ १०६३- ६ ३ १४०६--
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