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विषय
शतक उद्देशक भाग पृष्ठ वरण नागनत्तुआ व उसके बालमित्र का वर्णन ७ ९ ३ १२०३-- १३ बनस्पति, संख्यात, असंख्यात व अनंतजीवी, भेद-प्रभेद ८ ३ ३ १३६७- ६९ व्यवहार के ५ भेद
८ ८ ३ १४३२-- ३४ वृक्ष मूलादि को हिलाने से वायुकाय को लगने वाली क्रियाएँ
९ ३४ ४ १७७८-- ८१ वीचि (कषाय) अवीचिमान साधु को रूप निरीक्षण ___ करते लगती हुई क्रिया
१० २ ४ १७९१- ९३ वेदना वर्णन पर प्रज्ञापना का निर्देश
(श. १९ उ. ५ भाग ६ में भी) १० २ ४ १७९३- ९७ विग्रहगति एकेंद्रिय में ४ तथा शेष में १, २, ३ समयों की १४ १ ५ २२७८-- ८. वीचि-अवीचि द्रव्यों का आहार चौबीस दण्डक पर १४ ६ ५ २३२०-- २१ वर्षा जानने के लिए हाथ फैलाने वाले को क्रियाएँ १६ ८ ५ २५८३- ८४ व्यन्तर देव के समाहारादि । - १९ १०६ २८२६ : वनस्पति वर्ग वर्णन २१, २२ २३ तीन शतकों में २१ ८. ६ २६४२- ७४ व्युत्सर्ग के भेद-प्रभेद
२५ ७ ७ ३५३७-- ४०
९ १
१ ३३९-- ४१ २ ५९५-- ९६
श्रमण-निर्ग्रथों का लाघव । क्रोधादि का अभाव
प्रशस्त है तथा कांक्षा प्रदोष क्षीण होने से मोक्ष जाते हैं
१ शकेंद्र के विमानों से ईशानेंद्र के विमान कुछ उँचे हैं ३ शक्र-ईशानेन्द्र का मिलन, आलाप-संलाप तथा विवाद निर्णय
___३ श्रमणोपासक को सामायिक में भी सांपरायिकी क्रिया ७ श्रावक वनस्पति की हिंसा का त्यागी हो, तो पृथ्वीकाय
खोदते हुई वनस्पति की हिंसा से व्रत भंग नहीं ७ श्रावक श्रमण-माहनों को दान देता हुआ समाधि
प्राप्त करता है यावत् सिद्ध होता है ७
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२ ५९६-६०१ २ १०८२-- ८३
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३ १०८३-
८५
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३ १०८५---
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