Book Title: Bhagvati Sutra Part 07
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 674
________________ विषय शतक उद्देशक भाग पृष्ठ १८ ४ ६ २६९३-९५ १८ ७ ६ कषाय वर्णन प्रज्ञापना का निर्देश केवली यक्षावेष्ठित नहीं होते, वे निर्दोष __ भाषा ही बोलते हैं करणों (द्रव्यादि शरीर, इंद्रियादि) का वर्णन कतिसंचितादि व छक्कसमझियादि का वर्णन कर्म बंधन (बंधी शतक) का वर्णन कर्म-करण (करी शतक, करिसु शतक) वर्णन • कर्म-समर्जक शतक वर्णन क्षीण भोगी, (दुर्बल-शरीरी) मनुष्य भी भोग त्याग से ही त्यागी कहे जाते हैं। क्षेत्रातिक्रान्तादि दोषों का वर्णन २० १० २६ १--११ २७ १-११ २८ १-११ २७१४-१५ ६ २८२१-२५ ६ २९२२-४० ७ ३५४९--८९ ७ ३५९०-६२ ७ ३५९३-९९ __७ १ ३ १९७५-७८ ३ १०६६-११०१ खेचर तिर्यञ्च पंचेंद्रिय का योनि वर्णन जीवाभिगम का निर्देश ७ ५ ३ १९४७-४६ ७ १ २९६-३०२ ७ ७. १ १ ३०२-३१० ३०४-३०८ गर्भ में जीव की इंद्रिय सहित-रहित उत्पत्ति १ गर्भ में उत्पन्न होते ही आहार किसका ? माता____ पिता के अंग, स्थिति आदि गर्भ वर्णन १ गर्भ में मर कर नारकी या देव होने का वर्णन १ गर्भ में जीव को सुख-दुःखादि माता के समान • शुभाशुभ वर्णादि होने के कारण, साधा, उलटा, तिरछा उत्पन्न होना . गर्भ स्थिति, जल मनुष्य तिर्यंच की काय • भवस्थ । गर्भकाल, कितने का पुत्र हो सकता है, मैथुन में असंयम बुरे का दृष्टान्त २ गोशालक का सिद्धान्त, श्रावक का आचार .८ गतिप्रपात पर प्रज्ञापना का निर्देश .८ ७ १ ३०४-- १० ५ ५ ७ १ ४६२-- ६७ .३ १५८६-९१ ३ १४२६-२० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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